PU चुनाव 2025: JDU और जनसुराज के सियासी समर्पण के बीच ABVP का ऐतिहासिक उदय!

पटना। पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव 2025 का रण लगभग निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। राजनीति की इस प्रयोगशाला में हर बार नए समीकरण बनते-बिगड़ते हैं, लेकिन इस बार का परिदृश्य अभूतपूर्व है। JDU के पीछे हटने और प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’ के मैदान छोड़ने के बाद अब ABVP का विजय रथ ऐतिहासिक जीत की ओर अग्रसर है।

प्रशांत किशोर का बड़ा दांव—और उससे भी बड़ी हार!
2025 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने छात्र राजनीति में भी अपनी ताकत आजमाने का फैसला किया। PU चुनाव में उनकी एंट्री धमाकेदार बताई जा रही थी—धरना प्रदर्शन, टेंट सिटी, करोड़ों की फंडिंग और BPSC छात्र आंदोलन का सहारा लेकर PK ने यह संकेत देने की कोशिश की कि वे सिर्फ विधानसभा चुनावों के ही नहीं, बल्कि छात्र राजनीति के भी बड़े खिलाड़ी हैं। लेकिन चुनाव से पहले ही जनसुराज का इस तरह हार मान लेना कई सवाल खड़े करता है। सूत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर ने PU चुनाव को हाई-प्रोफाइल बनाने के लिए 2.5-3 करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन नतीजा? स्टूडेंट्स ने सिरे से नकार दिया! टेंट सिटी के निर्माण से लेकर ‘Joy of Giving Global Foundation’ के जरिए बिल जारी करने तक, हर चीज में अनियमितताएं सामने आ रही हैं। आरोप यह भी है कि टेंट लगाने वालों तक का भुगतान नहीं किया गया। जब पार्टी को बने छह महीने भी नहीं हुए और इस तरह की अव्यवस्थाएं उजागर होने लगीं, तो बड़ा सवाल यह उठता है कि प्रशांत किशोर की यह राजनीतिक प्रयोगशाला कितने दिनों तक टिकेगी?
ABVP की सुनामी: PU के इतिहास में पहली बार सभी सीटों पर जीत?
ABVP का संगठनात्मक ढांचा और उसकी जमीनी पकड़ हर चुनाव में मजबूत रही है, लेकिन इस बार का माहौल अलग है। लोकसत्ता हिंदी द्वारा कराए गए सर्वे (सैंपल साइज: 3952) में ABVP को 70% तक का स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है।ABVP के इस उभार के पीछे सबसे बड़ी भूमिका निभाई है याज्ञवल्क शुक्ला (क्षेत्र संगठन मंत्री) और रौशन सिंह (प्रांत संगठन मंत्री) की। दोनों नेताओं की पकड़ छात्रों के बीच इतनी मजबूत रही कि पूरा संगठन सक्रिय हो गया और हर कोने में ABVP की ही गूंज सुनाई देने लगी।
ABVP की बढ़त के पीछे कई कारण:
छात्र हितों के लिए निरंतर संघर्ष
राष्ट्रीयता की विचारधारा और संस्कार
संगठन की मजबूत रणनीति
कॉलेजों में सक्रिय कार्यकर्ता नेटवर्क
इस बार माहौल इतना गरमाया हुआ है कि स्टूडेंट ग्रुप खुद आगे आकर ABVP का प्रचार कर रहे हैं। यह पहली बार हो सकता है जब ABVP का पूरा पैनल सभी सीटों पर कब्जा जमाए!
PK की रणनीति हर मोर्चे पर नाकाम—क्या बिहार की राजनीति में भी यही होगा?
2018 के PU चुनावों में प्रशांत किशोर JDU के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और छात्रसंघ चुनाव को स्वयं मॉनिटर कर रहे थे। JDU छात्र इकाई के मोहित प्रकाश (अध्यक्ष) और कुमार सत्यम (कोषाध्यक्ष) ने जीत दर्ज की थी, लेकिन बाकी शीर्ष पदों पर ABVP का ही दबदबा रहा था। 2018 में JDU ने PU चुनाव के लिए 1.5 करोड़ रुपये खर्च किए थे। उस चुनाव के बाद प्रशांत किशोर के करीबी रणबीर नंदन पर कार्रवाई हुई और उन्हें JDU के कोषाध्यक्ष पद से हटा दिया गया। कई लोग मानते हैं कि यह प्रशांत किशोर की रणनीतिक विफलता का ही नतीजा था। अब 2025 में, जब प्रशांत किशोर खुद की नई राजनीतिक ब्रांडिंग कर रहे थे, तो PU चुनाव में मिली करारी हार उनके भविष्य के लिए गंभीर संकेत हो सकती है।
क्या PU चुनाव 2025 बिहार विधानसभा की पटकथा लिख रहा है?
छात्र राजनीति को हमेशा बड़े राजनीतिक बदलावों का संकेत माना जाता है। बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की एंट्री कितनी भी प्रभावी बताई जाए, लेकिन अगर स्टूडेंट्स ने उन्हें सिरे से नकार दिया, तो यह विधानसभा चुनाव के लिए भी चेतावनी हो सकती है।
क्या इस बार इतिहास रचने वाला है ABVP?
पटना यूनिवर्सिटी के हर कोने में अब एक ही नारा गूंज रहा है—ABVP! क्या यह महज छात्रसंघ चुनाव की जीत होगी या बिहार में एक बड़े राजनीतिक बदलाव की आहट? जवाब जल्द मिलेगा, लेकिन इस समय PU का हर छात्र बस एक ही चर्चा कर रहा है—ABVP की सुनामी!