पटना एम्स में डायबिटिक रेटिनोपैथी जागरूकता सम्मेलन आयोजित,100 से अधिक मरीजों की हुयी जांच

फुलवारीशरीफ । पटना एम्स के आंख विभाग के अध्यक्ष डा अमित राज ने कह कि डायबिटिक रेटिनोपैथी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति की रेटिना को प्रभावित करती है। ये रेटिना को रक्त पहुंचाने वाली महीन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है। अगर इसका समय पर इलाज न कराया जाए तो व्यक्ति अंधा भी हो सकता है। गुरूवार को पटना एम्स के आंख विभाग की ओर से डायबिटिक रेटिनोपैथी जागरूकत सम्मलेन में डा अमित राज ने कहा कि इसकी अलग-अलग स्टेज हो सकती हैं। इसकी शुरुआती स्टेज को नॉन पॉलिफरेटिव डायबिटिक रेटीनोपैथी कहते हैं। इसमें छोटे-छोटे ब्लड लीकेज होते हैं। सामान्य तौर पर इसमें होने वाली दिक्कत का एहसास भी नहीं होता है। इसमें न तो देखने में परेशानी होती है और न ही किसी तरह का दर्द महसूस होता है। इसका पता केवल आंख के पर्दे की जांच से ही किया जा सकता है। जब ये स्थिति बढ़ती है तो आंख के अंदर खून बहने होने लगता है और देखने में दिक्कत होने लगती है। इसमें एक आंख से कम दिखने लगता है और दूसरी आंख से ज्यादा। इसे स्थिति को फ्लोटस कहते हैं। खून में शुगर लेवल बढ़ने से रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं, जिससे रेटिना में सूजन पैदा होती है रेटिना को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी पोषक तत्व-ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है। खून बहने से आंख में ब्लाइंड स्पॉट बन जाता और अचानक से दिखना बंद हो जाता है।डॉ. अमित राज ने बताया कि डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को ही डायबिटिक रेटिनोपैथी हो सकती है। वक्त के साथ डायबिटीज बढ़ने से डायबिटिक रेटिनोपैथी होने का खतरा और बढ़ जाता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी के दो मुख्य चरण होते हैं। शुरुआती चरण को नॉन प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (एनपीडीआर) कहते हैं। इस चरण में रेटिना क्षेत्र की नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। सामान्य तौर पर ये बीमारी का शुरुआती चरण होता है, इसमें लक्षणों का पता नहीं चलता है। कुछ मामलों में क्षतिग्रस्त रक्त नलिकाओं के फटने से रेटिना के मध्य भाग में रक्त फैल जाता है। इस स्थिति को डायबिटिक मैक्युलोपैथी कहते हैं। इससे धुंधला दिखने लगता है। मधुमेह के 75 प्रतिषत मरीजों को किसी न किसी किस्म की डायबेटिक रेटिनोपैथी होती है और इनमें से 10 प्रतिशत मरीजों की आंखों की रौशनी जाने का खतरा हो सकता है।
उन्होंने कहा की मधुमेह होने पर भी लोग सही खान-पान, इलाज एवं समुचित जीवन शैली की मदद से आंखों के गंभीर रोगों से बच सकते हैं ।
इस मौके पर विभाग के सहायक प्रोफेसर डा भावेष चन्द्र साहा , डा अशोक लोकदर्शी , डा नायला समेत अन्य डाक्टर ने लगभग 100 मरीजों की रेटिना की जांच की गयी ।

You may have missed