ब्रिटिशकालीन शिव मंदिर में जलाभिषेक को उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

पालीगंज। अनुमंडल स्थित समदा गांव में पुनपुन नदी के तट पर स्थित ब्रिटिशकाल में सौ बर्षो पूर्व निर्मित बाबा भोलेनाथ के मन्दिर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान के दौरान शुक्रवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। इस मंदिर परिसर में माघ महीने के मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित होती है भारत का दूसरा सबसे बड़ा छोटन ओझा मवेशी मेला। यहां कई राज्यो से आते है ब्यवसाई।
मौके पर पालीगंज अनुमंडल के समदा गांव में पुनपुन नदी के तट पर निर्मित भोलेनाथ के मंदिर में शिवलिंग को जलाभिषेक करने के लिए शुक्रवार की सुबह तीन बजे से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। वही भोलेनाथ की मन्दिर का दरवाजा भीड़ को देखकर सुबह ढाई बजे ही खोल दिया गया था। इस दौरान सभी श्रद्धालुओ ने पुनपुन नदी में स्नान किया उसके बाद भोलेनाथ के मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक किया। मन्दिर परिसर में उमड़ी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मन्दिर के पुजारी कमलेश ओझा ने अपने सहयोगी अवधेश भगत, विजय कुमार, अखिलेश कुमार के अलावे अन्य लोगो के साथ मौजूद थे। मन्दिर में पूरे दिन दूर दराज से आये श्रद्धालुओ का तांता लगा रहा।
वहीं इस मौके पर मन्दिर के आसपास मेला का भी आयोजन पूर्व से किया जाता है। इस मेले में जलेबी, समोसा के अलावे अन्य प्रकार के मिठाई की दुकान लगाई गयी है। यहां श्रृंगार प्रसाधन के अलावे मिट्टी के बर्तनों, लोहे से निर्मित किसानों के लिए कृषि यंत्रों पूजा पाठ के सामानों के अलावे फूल माला की दुकाने लगाई गई। मेले की मशहूर चकतवा, सुथनी व सिंघाड़ा की बिक्री अधिक देखी गयी। मेले में पुरुषों के अलावे महिलाओं की संख्या अधिक थी। मेला परिसर में बनौली गांव से पहुंची शिव गुरु भक्त महिलाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर एक से बढ़कर एक धार्मिक गीत संगीत प्रस्तुत किया।
जानकारी के अनुसार पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र के समदा गांव में पुनपुन नदी के तट पर आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व ब्रिटिशकाल में ही भोलेनाथ का मंदिर निर्माण पतौना गांव निवासी छोटन ओझा के द्वारा कराया गया था। जिसके प्रांगण में मकर संक्रांति के अवसर पर माघ महीने में एक मवेशी मेला का आयोजन किया गया था। इस मेला का नामकरण छोटन ओझा मवेशी मेला के रूप में किया गया था। यह मेला कालांतर में सोनपुर के बाद भारत के दूसरे सबसे बड़ा मेला के रूप में परिवर्तित हो गया। आज भी यहां भारत के कई राज्यो से ब्यापारी अपना ब्यवसाय करने आते है। अब सबसे अधिक यहां फर्नीचर की दुकाने लगाई जाती है। इसके अलावे पशु, आलमीरा, गोदरेज, बक्से, रजाई, कम्बल, टोकरी, पत्थर के बने शीलवट, चक्की के अलावे सभी प्रकार की वस्तुओं की खरीद बिक्री की जाती है। यह मेला माघ महीने में मकर संक्रांति के दिन शुरू होती है जो पूरे 20 दिनों तक चलती है। इस मेले का नियंत्रण व देखभाल मेला के संस्थापक छोटन ओझा के वंशज विश्वरंजन ओझा व कमलेश ओझा के द्वारा किया जाता है। पूर्व से मेला मालिक के सहयोगी अवधेश भगत ने बताया कि इस महत्वपूर्ण मेले से इलाके व दूर दराज के लोगो को काफी लाभ होती है। शादी ब्याह में भी अपने बच्चियो को देने के लिए फर्नीचर के अलावे अन्य वस्तुओं की खरीदारी करते है। लोग इस मेले का इंतजार बेशब्री से करते है। वही उन्होंने नाराजगी प्रकट करते हुए बताया कि इतना महत्वपूर्ण मेले की जमीन पुनपुन नदी में कटकर बह रही है। केंद्रीय मंत्री तक इस नदी पर पुल बनाने का आश्वासन दो वर्षों पूर्व ही दिए लेकिन आजतक कार्य की शुरुआत नहींं हुई।
वहीं मेला मालिक कमलेश ओझा व विश्वरंजन ओझा ने बताया कि अधिकारियों व जनप्रतिनिधियो के उदासीन रवैये के कारण नदी में कटकर बह रहे जमीन की सुरक्षा के लिये कोई ठोस कदम नही उठाई जा रही है।

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