दिल्ली सरकार के खिलाफ लाए जा रहे केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ एकजुट हुआ विपक्ष, विरोध में करेंगे वोट

नई दिल्ली। संसद में आज केंद्र सरकार दिल्ली के अधिकारों से संबंधित अध्यादेश ला सकती है। इसके चलते सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हो गई हैं। इंडिया गठबंधन की सारी पार्टियों ने व्हिप जारी किया है। वही इस मसले पर करीब दो माह से आम आदमी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच तनाव चरम पर है। यह मामला नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट में भी विचारधीन है। वही जद (यू) ने भी मानसून सत्र के लिए पार्टी के राज्यसभा सांसदों को दिल्ली से संबंधित विधेयक के खिलाफ मतदान करके पार्टी के रुख का समर्थन करने के लिए व्हिप जारी किया है। राज्यसभा में जेडीयू के मुख्य सचेतक अनिल हेगड़े ने कहा कि जब भी महत्वपूर्ण विधेयक आते हैं, तो न केवल जेडीयू बल्कि सभी दल अपने सांसदों को व्हिप जारी करते हैं। उन्होंने कहा कि हमने अपनी पार्टी के सांसदों को व्हिप जारी किया है, हमने हमेशा यही किया है। हालांकि, हेगड़े ने कहा कि मैं इसका पता लगाऊंगा कि क्या पहले भी किसी अवसर पर उपसभापति को व्हिप जारी किया गया था या नहीं। केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार पर नियंत्रण के लिए लाया गया अध्यादेश न केवल संघीय ढांचे को ध्वस्त करता है बल्कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के खिलाफ यह एक काला कानून है। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ द्वारा दिल्ली में पुलिस, लोक व्यवसथा और भूमि मामलों को छोड़कर सभी शक्तियां निर्वचित सरकार को सौंपने का निर्णय दिया गया था। उसके बाद भी केंद्र सरकार द्वारा ऐसा अध्यादेश लाना न केवल निर्वाचित सकरार के अधिकारियों को कमजोर ता है बल्कि संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन भी है।
अध्यादेश निर्वाचित सरकार के अधिकारों का हनन
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश 2023 के तहत केंद्र सरकार ने 19 मई को दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और विजिलेंस से जुड़े अधिकारों को लेकर एक अध्यादेश जारी किया था। उसके बाद से अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा गठित नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी भी प्रभाव में है। अथॉरिटी में दिल्ली सीएम, मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव शामिल है। अथॉरिटी बहुमत से सेवा विभाग से संबंधित मसलों पर फैसला लेती है। अध्यादेश के इन प्रावधानों का शुरू से ही आम आदमी पार्टी विरोध करती आई है। सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि यह निर्वाचित सरकार के अधिकारों का हनन है। इस मुद्दे पर दिल्ली को लेकर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष भी एकजुट हो गया है।

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