नीतीश की ‘परछाई’ थे आरसीपी सिंह..आरसीपी टैक्स की चर्चा पर नीतीश-जदयू क्यों रहते थे चुप..ललन से पहले बने अध्यक्ष..अब अचानक..

पटना।(बन बिहारी) सत्ताधारी जदयू में पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को लेकर जारी उठापटक थमने का नाम नहीं ले रहा है।पहले तो पार्टी ने उन्हें राज्यसभा के लिए दोबारा नहीं भेजा।वहीं अब पार्टी के दो कार्यकर्ताओं के द्वारा उपलब्ध कराई गई बड़े पैमाने पर संपत्ति अर्जित करने जैसे मामले को लेकर उनसे जवाब मांगा गया है।आरसीपी सिंह के द्वारा 9 वर्षों के दौरान खरीदे गए 58 प्लॉट की जानकारी सार्वजनिक हो गई है।जदयू अपनी पीठ यह कह कर थपथपा रही है कि जदयू ऐसी पहली पार्टी है जो अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष के तथाकथित भ्रष्टाचार का पोल खोल रही है।जबकि सच्चाई है कि 2010 से लेकर 2022 तक आरसीपी टैक्स को मुद्दा बनाकर विपक्ष के द्वारा कई बार सड़क से सदन तक आवाज उठाया गया।मगर उस दौरान विपक्ष के आरसीपी टैक्स के आरोप को जदयू के टॉप से लेकर बॉटम तक के नेताओं के द्वारा आरसीपी सिंह के पक्ष में डिफेंड किया गया।2005 के नवंबर में जब नीतीश कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री बिहार के शासन की बागडोर संभाली तब कुछेक माह बाद से ही आरसीपी सिंह, जो उत्तर प्रदेश कैडर के उस वक्त के आईएएस अधिकारी थे,सीएम नीतीश के प्रधान सचिव के रूप में साथ आ गए। 2010 में जब बिहार में भाजपा- जदयू गठबंधन को विशाल बहुमत प्राप्त हुआ।नीतीश कुमार पुनः मुख्यमंत्री बने।तब उन्होंने आरसीपी सिंह को अपनी पार्टी के तरफ से सांसद बनाकर राज्यसभा भेजा।बिहार में लगभग सभी लोग इस बात को जानते हैं कि 2009 से लेकर 2021 के जुलाई में केंद्र में मंत्री बनने तक बिहार की प्रशासनिक बागडोर अप्रत्यक्ष रूप से आरसीपी सिंह के हाथो में थी।विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के भी कई विक्षुब्ध दबे जुबान में प्रदेश में सीएम नीतीश कुमार की परछाई माने जाने वाले आरसीपी सिंह के हुकूमत का विरोध करते थे।यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि लगातार 16 वर्षों तक बिहार की राजनीति में तथा उसके पूर्व भी केंद्र में मंत्री पद संभाले रहने के दौरान बतौर सचिव आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के सबसे खास बने रहे थे।सीएम नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को इतना पसंद करते थे कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर उन्होंने अपने साथ समता पार्टी के दिनों में कदम से कदम मिलाकर साथ देने वाले तथा उनके लिए तमाम प्रकार के समस्याओं का निपटारा करने वाले राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से पहले आरसीपी सिंह को बैठाया। समस्या तब हुई जब आरसीपी सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए।जब कि सीएम नीतीश कुमार चाहते थे कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में आरसीपी सिंह तथा ललन सिंह एक साथ शामिल हों, अथवा ना हों।दरअसल आरसीपी सिंह सीएम नीतीश कुमार की ‘पसंद’ तथा ललन सिंह ‘जरूरत’ थे।ऐसे में आरसीपी सिंह ने जल्दबाजी दिखाकर सीएम नीतीश कुमार के किचन कैबिनेट में अपने नंबर दो के स्थान पर स्वयं सवालिया निशान लगा लिया। 2021 के जुलाई में मंत्री पद ग्रहण करने के उपरांत सीएम नीतीश कुमार को आरसीपी सिंह की ‘बोली’ बदली हुई महसूस होने लगी।कई मौकों पर आरसीपी सिंह के सुर जदयू के बजाय भाजपा के साथ ज्यादा इत्तेफाक रखने लगे थे।खास तौर पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर जब आरसीपी सिंह ने भाजपा के सुर में सुर मिलाया।तब यह बात सीएम नीतीश कुमार को खटक गई।इधर ललन सिंह भी जदयू में राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बैठ चुके थे।आरसीपी सिंह के निरंकुशता को लेकर जो लोग भी उनके विरोधी थे।वे खुलकर पार्टी के अंदर उनके खिलाफ माहौल तैयार करने लगे थे।भाजपा के दिखाएं सपनों में खोकर अंतत आरसीपी सिंह को अपने मंत्री तथा सांसद के पद की कुर्बानी देनी पड़ी।अंतिम क्षणों तक भी आरसीपी सिंह को भरोसा था कि नीतीश कुमार उनका टिकट नहीं काटेंगे।क्योंकि लंबे समय के साथ के वजह से वे सीएम नीतीश कुमार के मनोभाव से पूरी तरह वाकिफ हो चुके थे।यहीं समझने में आरसीपी सिंह से गलती हो गई।उन्होंने यह नहीं समझा कि राजनीति मन मुताबिक नहीं बल्कि जरूरत के मुताबिक चलती है। आरसीपी सिंह यह नहीं समझ सके कि आज पार्टी के अंदर तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष ललन सिंह की स्थिति इतनी मजबूत है कि उन्हें नाराज कर पाना नीतीश कुमार के लिए किसी भी हाल में उचित नहीं था।अभी जो पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की संपत्ति को लेकर जदयू के टीम के द्वारा जुटाए गए दस्तावेज सार्वजनिक हुए हैं।वह भी कुल मिलाकर आरसीपी सिंह को संसदीय राजनीति से दरकिनार करने की मुहिम का एक हिस्सा है।यहां उल्लेखनीय है कि आरसीपी सिंह का टिकट काटने के पूर्व सीएम नीतीश कुमार को बख्तियारपुर’बाढ़ तथा नालंदा के एक-एक कार्यकर्ता से स्वयं जाकर मिलना पड़ा था।दरअसल वे यह देखना चाहते थे कि उनकी राजनीतिक जड़ों में आरसीपी सिंह ने कितनी गहरी पैठ बना रखी है।सब नापतौल कर आरसीपी सिंह को पुनः राज्यसभा ना भेजने का फैसला लिया गया।पार्टी सूत्रों के अनुसार अब यह प्रयास किया जा रहा है कि आरसीपी सिंह अपने राजनीतिक जमात के नजर में भी गिर जाएं।ताकि नालंदा में नीतीश कुमार के समक्ष किसी प्रकार के समानांतर राजनीति की संभावना भविष्य में पैदा ना हो सके।

Report-Ban Bihari

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