शिवयोग के सुयोग में नाग पंचमी आज, सांपों की पूजा से मिलेगी कालसर्प योग से मुक्ति, मंदिरों में भीड़

पटना। हिंदू धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व है। सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व नाग देवता की पूजा और उनसे कृपा प्राप्ति का दिन होता है। इस वर्ष नाग पंचमी मंगलवार को मनाई जा रही है, जिसमें शिव योग और रवि योग का अद्भुत संयोग बना है। श्रद्धालुओं के लिए यह दिन न केवल पूजा-अर्चना का है, बल्कि ज्योतिषीय दोषों से मुक्ति पाने का भी सशक्त अवसर माना जाता है।
नाग पंचमी का धार्मिक महत्व
भविष्य पुराण के अनुसार नाग पंचमी का पर्व सर्पों को समर्पित है। इस दिन सर्पों के 12 प्रमुख स्वरूपों—अनंत, वासुकि, शेष, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक, शंखपाल, धृतराष्ट्र, कालिया और अश्वतर की पूजा की जाती है। भगवान शिव को नाग अत्यंत प्रिय हैं और सावन उनका प्रिय महीना है, इसलिए इस अवसर पर नागों की पूजा करने से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कालसर्प दोष से मुक्ति का अवसर
जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उनके जीवन में बार-बार बाधाएं आती हैं। नाग पंचमी के दिन नाग देवता की विधिपूर्वक पूजा करने से इस दोष का शमन होता है। पूजा के बाद “ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्” मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। रुद्राभिषेक करवाना भी इस दिन विशेष फलदायी माना जाता है।
पूजा विधि और परंपरा
इस दिन श्रद्धालु नाग देवता की दूध, दही, लावा, खीर, पुष्प, दुर्बा और सिंदूर से पूजा करते हैं। कहीं-कहीं मिट्टी या आटे के सर्प बनाकर उन्हें रंगों से सजाया जाता है और उनकी आराधना की जाती है। फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा पूरी कर आरती की जाती है। कई स्थानों पर नाग-नागिन को दूध व लावा में नींबू रस मिलाकर चढ़ाया जाता है।
क्षेत्रीय परंपराएं और लोक आस्था
बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में नाग पंचमी के दिन कुलदेवी के साथ नाग देवता की पूजा होती है। श्रद्धालु खीर और महिआउर (खोरजाउर) का भोग लगाकर भजन, नचारी और लोकगीत गाते हैं। कुलदेवी को लाल चुनरी, फल, फूल और श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। वहीं मगध क्षेत्र में लोग नीम की पत्तियां घरों में लगाकर व्यंजन बनाते हैं। पकवानों में मालपुआ, दालपुरी, खीर, आम और कटहल प्रमुख होते हैं। ये पकवान इष्टदेव को भोग रूप में अर्पित किए जाते हैं।
मनसा देवी की पूजा
उत्तर भारत, बंगाल और उड़ीसा जैसे क्षेत्रों में नाग पंचमी के दिन देवी मनसा की भी पूजा होती है। उन्हें नागों की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनकी आराधना से जीवन में विष और भय का नाश होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
गरुड़ पंचमी और पौराणिक मान्यता
नाग पंचमी को गरुड़ पंचमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन गरुड़ देव की पूजा भी होती है जो नागों के शत्रु माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पृथ्वी का भार शेषनाग ने अपने सिर पर उठाया हुआ है, इसलिए उनकी पूजा विशेष फलदायक मानी जाती है। नाग पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति श्रद्धा और संरक्षण की भावना का प्रतीक भी है। यह दिन नागों की पूजा के माध्यम से मानव और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने की सीख देता है। साथ ही कालसर्प दोष से मुक्ति, शिव कृपा प्राप्ति और पारिवारिक कल्याण के लिए भी यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है।

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