राहुल गांधी का पीएम पर हमला, कहा- ट्रंप से डरते हैं मोदी, भारत के फैसले ले रहे अमेरिकी राष्ट्रपति
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा राजनीतिक प्रहार किया है। इस बार उन्होंने प्रधानमंत्री पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से डरने और उनके दबाव में निर्णय लेने का आरोप लगाया है। राहुल गांधी के इस बयान ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है, जिसमें विदेश नीति से लेकर महिला अधिकारों तक के मुद्दों को उन्होंने उठाया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति से जुड़ा विवाद
राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी ट्रंप से डरते हैं और उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को यह घोषणा करने दी कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार की अनदेखी के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति को बधाई संदेश भेजते रहते हैं। राहुल गांधी का यह बयान उस पृष्ठभूमि में आया है जब हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने इस्राइल और हमास के बीच हुए शांति समझौते की मध्यस्थता की थी और पीएम मोदी ने उनकी सराहना करते हुए बधाई दी थी। राहुल गांधी का आरोप है कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र और आत्मनिर्भर नहीं रह गई है, बल्कि अब यह अमेरिकी दबाव में संचालित हो रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर भारत जैसे लोकतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र के फैसले किसी अन्य देश के राष्ट्रपति की इच्छा पर क्यों निर्भर हों।
विदेश दौरों और नीतियों को लेकर भी सवाल
राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि वित्त मंत्री का प्रस्तावित अमेरिकी दौरा अचानक रद्द कर दिया गया, जो इस बात का संकेत है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में कुछ असहजता है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के शर्म अल शेख सम्मेलन में न जाने को भी विदेश नीति की कमजोरी के रूप में पेश किया। इसके साथ ही उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र करते हुए कहा कि उस पर भी प्रधानमंत्री ने ट्रंप का विरोध नहीं किया। इन आरोपों के माध्यम से राहुल गांधी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि केंद्र सरकार की विदेश नीति आत्मसम्मान और राष्ट्रीय हित के बजाय बाहरी दबावों पर आधारित होती जा रही है। उनका तर्क है कि प्रधानमंत्री मोदी केवल मित्रता और प्रशंसा की राजनीति करते हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गरिमा और स्वतंत्र नीति पर समझौता कर रहे हैं।
महिला पत्रकारों के मुद्दे पर भी निशाना
राहुल गांधी ने अपने बयान में महिला अधिकारों से जुड़ा एक और मुद्दा भी उठाया। हाल ही में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। इस घटना को लेकर देशभर में सरकार की आलोचना हुई। राहुल गांधी ने इस संदर्भ में कहा कि जब प्रधानमंत्री मोदी ऐसे आयोजनों में महिला पत्रकारों को बाहर रखने की अनुमति देते हैं, तो यह पूरे देश की महिलाओं का अपमान है। उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री की इस चुप्पी से यह साफ झलकता है कि वे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होने में सक्षम नहीं हैं। उनके अनुसार, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अवसर मिलना चाहिए और ऐसी घटनाएं नारी शक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचाती हैं।
राजनीतिक संदेश और विपक्ष की रणनीति
राहुल गांधी के इस बयान को कांग्रेस पार्टी की आगामी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। विदेश नीति और महिला सशक्तिकरण जैसे संवेदनशील विषयों पर उन्होंने सरकार को घेरने की कोशिश की है। विपक्ष का उद्देश्य यह दिखाना है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार न केवल घरेलू मोर्चे पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने रुख में कमजोर साबित हो रही है। साथ ही, राहुल गांधी का यह बयान कांग्रेस के लिए जनता के बीच यह संदेश देने का प्रयास है कि पार्टी अब केवल विरोध नहीं कर रही, बल्कि वैकल्पिक राजनीतिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत कर रही है—जहां राष्ट्रीय सम्मान, स्वतंत्र विदेश नीति और लैंगिक समानता को प्राथमिकता दी जा रही है।
सरकार की संभावित प्रतिक्रिया
हालांकि सरकार की ओर से इस बयान पर तत्काल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन भाजपा सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी के आरोपों को बेबुनियाद और राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित बताया जा रहा है। भाजपा का तर्क है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा भारत की विदेश नीति को मजबूत और स्वतंत्र बनाए रखा है, और भारत आज विश्व मंच पर पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है। राहुल गांधी के इस बयान ने भारतीय राजनीति में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति और उनकी नेतृत्व शैली को केंद्र में ला दिया है। एक ओर कांग्रेस नेता इसे भारतीय संप्रभुता और महिला अधिकारों से जुड़ा मुद्दा बता रहे हैं, वहीं सरकार समर्थक इसे राजनीतिक बयानबाजी करार दे रहे हैं। आगामी चुनावी माहौल में ऐसे बयानों से राजनीतिक सरगर्मी बढ़ना तय है। परंतु इस बहस के बीच यह सवाल जरूर उभरता है कि क्या भारत की विदेश नीति वास्तव में बाहरी दबाव में है, या फिर यह केवल राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुकी है — इसका उत्तर आने वाले समय में देश की जनता तय करेगी।


