बिहार चुनाव की तैयारी में मायावती की पार्टी, विपक्ष की टेंशन बढ़ी, कई सीटों पर होगा कड़ा मुकाबला

पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। सभी प्रमुख पार्टियाँ अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटी हुई हैं। इसी क्रम में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है और राज्य में जोरदार तरीके से अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश में लग गई है। बसपा इस बार बिहार चुनाव में अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रही है, जिससे विपक्षी दलों की चिंता बढ़ गई है।
जिला स्तरीय कार्यक्रमों की शुरुआत
बसपा ने 13 अप्रैल से बिहार में जिला स्तरीय कार्यक्रमों की शुरुआत करने का निर्णय लिया है। इस दौरान पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम भी कार्यकर्ताओं के बीच मौजूद रहेंगे। 13 और 14 अप्रैल को कैमूर में कार्यकर्ता बैठक आयोजित की जाएगी। इसके बाद 17 अप्रैल को रोहतास, 18 अप्रैल को बक्सर, 19 अप्रैल को मुजफ्फरपुर और 20 अप्रैल को अरवल में बैठकें की जाएंगी। इन बैठकों का मकसद संगठन को मजबूत करना और चुनावी रणनीति को धार देना है।
प्रदेश कार्यालय में अहम बैठक
22 अप्रैल को बसपा के प्रदेश कार्यालय में प्रदेश स्तरीय कमेटी की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में यह तय किया जाएगा कि पार्टी बिहार विधानसभा की कितनी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। यह बैठक आगामी चुनाव को लेकर पार्टी की दिशा और रणनीति को अंतिम रूप देने के लिहाज से अहम मानी जा रही है।
बिना गठबंधन अकेले चुनाव में उतरने की तैयारी
फिलहाल बहुजन समाज पार्टी बिहार में किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। पार्टी ने संकेत दिए हैं कि वह इस बार अकेले चुनाव लड़ेगी। बसपा की यह रणनीति उस सामाजिक वर्ग को साधने की कोशिश है, जो अब तक किसी एक पार्टी के पाले में नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के जिलों में बसपा का जनाधार है और इन्हीं इलाकों में पार्टी अपने प्रभाव को और बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
विजयी उम्मीदवारों के चयन में सतर्कता
बसपा इस बार अपने उम्मीदवारों के चयन में विशेष सतर्कता बरत रही है। पार्टी इस बात का ध्यान रखेगी कि जीतने के बाद कोई भी उम्मीदवार अन्य दलों में न जाए। पूर्व में जमा खान जैसे नेता बसपा से चुनाव जीतने के बाद एनडीए में शामिल हो गए थे, जिससे पार्टी को राजनीतिक नुकसान हुआ था। इस बार पार्टी नेतृत्व इस तरह की स्थिति से बचने के लिए मजबूत और विश्वसनीय उम्मीदवारों को मैदान में उतारने पर जोर दे रहा है। बसपा की यह सक्रियता आगामी विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकती है, जिससे चुनावी समीकरणों में बड़ा बदलाव आ सकता है।

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