मांझी का चिराग पर तंज, कहा- उनमें अभी समझदारी की कमी, धीरे-धीरे अनुभव आएगा

पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल तेज हो गई है। एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के दो प्रमुख दलित चेहरे—लोजपा (रामविलास) अध्यक्ष चिराग पासवान और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी के बीच बयानबाज़ी का दौर शुरू हो गया है। यह सियासी टकराव तब सामने आया जब चिराग पासवान ने खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताते हुए नालंदा में एक जनसभा को संबोधित किया।
चिराग पासवान का दावा और मुद्दे
नालंदा जिले के राजगीर में आयोजित एक रैली में चिराग पासवान ने “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” का नारा बुलंद करते हुए कहा कि वह हमेशा से दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ उठाते रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टियां आरक्षण और संविधान के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों को डराने का प्रयास कर रही हैं। साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया कि जब तक वे केंद्र में हैं, तब तक आरक्षण और संविधान को कोई खतरा नहीं है।
पिता रामविलास पासवान के आदर्शों का ज़िक्र
चिराग पासवान ने अपने पिता रामविलास पासवान को याद करते हुए कहा कि उनके आदर्श हमेशा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे उसी राह पर चल रहे हैं और उनके पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।
चिराग पर मांझी का तंज
चिराग के इन दावों पर केंद्रीय मंत्री और ‘हम’ के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने तीखा पलटवार किया। पटना में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि चिराग पासवान में अभी राजनीतिक समझदारी की कमी है और समय के साथ उनमें अनुभव आएगा। मांझी ने कहा कि किसी भी राजनेता को केवल एक जाति या समुदाय विशेष की चिंता नहीं करनी चाहिए, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए काम करना चाहिए।
राजनीति में परिपक्वता की बात
मांझी ने कहा कि राजनीति में आने वाला व्यक्ति यदि केवल पिछड़े या दलित समाज के हित की ही बात करे तो यह एकांगी सोच है। एक राजनेता का कर्तव्य है कि वह समाज के सभी जरूरतमंद, गरीब और वंचित वर्गों की सेवा करे, न कि केवल किसी विशेष वर्ग की। मांझी ने इसे अनुभव की कमी बताते हुए कहा कि चिराग को राजनीति में अभी और परिपक्वता की ज़रूरत है।
चुनाव लड़ने की तैयारी पर भी प्रतिक्रिया
जब मांझी से पूछा गया कि चिराग पासवान बिहार में चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, तो उन्होंने सहजता से कहा कि बिहार में तो सभी लोग चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें कोई खास बात नहीं है, सभी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है।
चिराग का विपक्ष पर हमला और आपातकाल का जिक्र
अपनी रैली में चिराग ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें बिहार की राजनीति से दूर रखने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल उन्हें चुनाव से पहले कमजोर करने के प्रयास में हैं। चिराग ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि सबसे बड़ा संवैधानिक हमला आपातकाल के दौरान हुआ था, जब कांग्रेस ने दलितों और अल्पसंख्यकों पर जबरन नसबंदी थोप दी थी। बिहार की राजनीति में दलित नेताओं के बीच यह सियासी खींचतान चुनावी माहौल को और गर्मा रही है। चिराग पासवान जहां अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ाते हुए दलित हितैषी नेता के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं जीतनराम मांझी उन्हें अनुभव की नसीहत दे रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी मैदान में एनडीए के इन दो नेताओं की रणनीति क्या मोड़ लेती है और इसका क्या असर दलित मतदाताओं पर पड़ता है।
