October 28, 2025

मधेपुरा में फर्जी आधार कार्ड बनाने वाले गिरोह का खुलासा, ईओयू ने की छापेमारी, तीन गिरफ्तार

मधेपुरा। बिहार के मधेपुरा जिले से एक बड़ा साइबर अपराध उजागर हुआ है। आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने छापेमारी कर आधार कार्ड से जुड़े फर्जीवाड़े में सक्रिय एक गिरोह का खुलासा किया है। इस कार्रवाई में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें रामप्रवेश कुमार, मिथिलेश कुमार और विकास कुमार शामिल हैं।
ईओयू की विशेष कार्रवाई
यह छापेमारी ईओयू के अपर पुलिस महानिदेशक के नेतृत्व और पुलिस उप-महानिरीक्षक (साइबर) के मार्गदर्शन में गठित विशेष टीम ने मधेपुरा पुलिस के सहयोग से की। ईओयू की साइबर विंग ने बताया कि गिरफ्तार गिरोह कई फर्जी वेबसाइट और सॉफ्टवेयर की मदद से आधार डेटा में हेरफेर करता था। उनकी तकनीकें इतनी जटिल थीं कि आम लोग आसानी से उनके जाल में फंस जाते थे।
किस तरह होता था आधार डेटा में हेरफेर
जांच में सामने आया कि यह गिरोह ईसीएमपी सॉफ्टवेयर, यूसीएल सोर्स कोड और ayushman.site जैसी 6-7 नकली वेबसाइट का इस्तेमाल कर रहा था। इन माध्यमों से वे आधार कार्ड से जुड़ी जानकारियों तक अवैध पहुंच बना लेते थे। गिरोह सिलिकॉन फिंगरप्रिंट का प्रयोग कर बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन और ओटीपी प्रक्रिया को बाईपास कर लेता था। इसके जरिए वे आधार डेटा को बदलने और चोरी करने में सफल हो जाते थे।
आम नागरिकों से धोखाधड़ी
गिरोह लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का झांसा देकर उनका बायोमेट्रिक और पहचान पत्र हासिल कर लेता था। जब लोग अपनी जानकारी साझा कर देते, तो उसका इस्तेमाल साइबर अपराधों में किया जाता। इस प्रक्रिया में कई मासूम लोग अपनी निजी जानकारी और पहचान का शिकार बन जाते थे।
मुख्य आरोपी रामप्रवेश की कहानी
पुलिस जांच में यह तथ्य सामने आया कि गिरोह का मास्टरमाइंड रामप्रवेश कुमार था। उसने 2021 में मैट्रिक पास करने के बाद अपना साइबर कैफे खोला था। शुरू में वह पैन कार्ड और प्रमाण पत्र जैसी सामान्य सेवाएं देता था, लेकिन धीरे-धीरे उसने अवैध कामों में कदम रख दिया। उसने कॉमन सर्विस सेंटर की आईडी हासिल की और इसके बाद यूट्यूब और गूगल की मदद से नकली आधार पोर्टल तैयार करना सीख लिया। रामप्रवेश ने कई फर्जी वेबसाइटें बनाईं, जिनके जरिए वह लोगों का आधार और बायोमेट्रिक डेटा स्टोर कर लेता और उन्हें साइबर अपराधियों को बेच देता। यही नहीं, उसने राजस्थान की कई लॉगिन आईडी का इस्तेमाल कर आधार डेटा में अवैध बदलाव किए।
नेटवर्क का विस्तार और तकनीकी सहयोग
जांच में यह भी पता चला कि रामप्रवेश ने विकास कुमार के जरिए नीतीश नामक व्यक्ति से संपर्क किया। नीतीश ने एनीडेस्क जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से उसके लैपटॉप पर अवैध रूप से ईसीएमपी सॉफ्टवेयर डाउनलोड कराया। इसी तकनीकी सहयोग के जरिए वह ऑपरेटर के बायोमेट्रिक और ओटीपी सिस्टम को धोखा देकर डेटा में हेरफेर करता था। यह गिरोह न केवल बिहार बल्कि अन्य राज्यों में भी फैला हुआ था।
आधार प्रणाली पर सवाल
इस घटना ने आधार प्रणाली की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस आधार कार्ड को नागरिकों की पहचान का सबसे मजबूत दस्तावेज माना जाता है, उसी में सेंधमारी कर अपराधी बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी कर रहे थे। ईओयू की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले से कई सुरक्षा खामियां उजागर हुई हैं। विस्तृत रिपोर्ट भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को भेजी जा रही है ताकि आगे की सुरक्षा मजबूत की जा सके।
आगे की जांच और कार्रवाई
फिलहाल ईओयू ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन जांच अभी जारी है। पुलिस का मानना है कि इस गिरोह के तार कई अन्य राज्यों तक फैले हो सकते हैं। अन्य सहयोगियों और तकनीकी मददगारों की तलाश की जा रही है। ईओयू का कहना है कि यह केवल एक गिरोह का खुलासा नहीं, बल्कि पूरे नेटवर्क का सिरा है। आगे की जांच में और भी नाम सामने आ सकते हैं। मधेपुरा में फर्जी आधार कार्ड बनाने वाले गिरोह का पर्दाफाश एक बड़ी सफलता है। यह न केवल आम लोगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि आधार प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए भी जरूरी है। यह मामला यह भी दिखाता है कि साइबर अपराध किस तेजी से बढ़ रहा है और अपराधी किस तरह तकनीकी ज्ञान का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि आम नागरिक सतर्क रहें, अपनी व्यक्तिगत जानकारी किसी अनजान व्यक्ति या वेबसाइट को न दें और सरकार भी सुरक्षा तंत्र को और मजबूत बनाए।

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