जनसुराज ने 51 उम्मीदवारों की पहली सूची की जारी: कुम्हरार से केसी सिन्हा और करगहर से रितेश पांडेय को टिकट, 11 से शुरू होगा प्रचार
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है। इसी बीच प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने गुरुवार को अपने 51 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। पटना के शेखपुरा हाउस में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह ने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की। हालांकि इस मौके पर पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर मौजूद नहीं थे, लेकिन उनकी रणनीति और चुनावी दिशा इस सूची में साफ झलकती है।
प्रमुख उम्मीदवारों की घोषणा
जनसुराज की घोषित सूची में कई नए और चर्चित नाम शामिल हैं। पार्टी ने वाल्मीकिनगर से दीर्घ नारायण प्रसाद, पूर्णिया के अमौर से अफरोज आलम, कटिहार के प्राणपुर से कुणाल निषाद, सुपौल के निर्मली से रामप्रवेश कुमार यादव, सुरसंड से ऊषा किरण और लोरिया से सुनील कुमार को टिकट दिया है। इसके अलावा दरभंगा से आरके मिश्रा, गोपालगंज से प्रीति किन्नर, कुम्हरार से केसी सिन्हा और मांझी से वाई.बी. गिरी को उम्मीदवार बनाया गया है। सबसे ज्यादा चर्चा में करगहर सीट रही, जहां से भोजपुरी गायक रितेश पांडेय को टिकट दिया गया है। वहीं अस्थावां सीट से आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है, जिससे राजनीतिक हलकों में नए समीकरण बनने की चर्चा तेज हो गई है।
पार्टी की रणनीति और जनसुराज का विस्तार
जनसुराज ने साफ किया है कि यह तो सिर्फ शुरुआत है। उदय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पार्टी हर दिन नई लिस्ट जारी करती रहेगी, ताकि धीरे-धीरे सभी उम्मीदवारों का चयन पूरा हो सके। उन्होंने कहा कि जनसुराज का उद्देश्य राजनीति में नए और स्वच्छ चेहरे लाना है, जो जनता के मुद्दों पर बात करें और जमीनी स्तर पर बदलाव ला सकें। पार्टी के मुताबिक, उम्मीदवारों के चयन में सामाजिक प्रतिनिधित्व और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखा गया है। महिला उम्मीदवारों को भी उचित हिस्सेदारी दी गई है। विशेष रूप से गोपालगंज से प्रीति किन्नर को टिकट देकर जनसुराज ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसकी राजनीति समावेशी और समाज के सभी वर्गों के लिए खुली है।
11 अक्टूबर से शुरू होगा प्रचार अभियान
उदय सिंह ने घोषणा की कि 11 अक्टूबर से जनसुराज का चुनाव प्रचार औपचारिक रूप से शुरू होगा। प्रशांत किशोर स्वयं इस अभियान का नेतृत्व करेंगे। उन्होंने बताया कि प्रचार की शुरुआत तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर से होगी। यह कदम राजनीतिक दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि प्रशांत किशोर पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि यदि वे चुनाव लड़ेंगे, तो राघोपुर से ही लड़ेंगे।
प्रशांत किशोर का राघोपुर और करगहर से जुड़ाव
कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा था कि वे केवल दो जगहों से चुनाव लड़ने पर विचार करेंगे — अपनी जन्मभूमि सासाराम के करगहर से या अपनी कर्मभूमि राघोपुर से। उनका कहना था कि “किसी तीसरी जगह से चुनाव लड़ने का कोई अर्थ नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा था कि अगर वे चुनाव लड़ेंगे, तो तेजस्वी यादव या नीतीश कुमार जैसे बड़े नेताओं के खिलाफ ही लड़ेंगे, ताकि जनता को साफ विकल्प मिल सके। उनका बयान “अगर चुनाव लड़ेंगे तो तेजस्वी के खिलाफ ही लड़ेंगे” ने उस समय बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव लड़ते हैं, तो वे निश्चित रूप से उनके खिलाफ भी चुनाव मैदान में उतरेंगे। किशोर ने कहा था कि नीतीश पिछले दो दशकों से खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और “पीछे के दरवाजे से राजनीति” कर रहे हैं।
जनसुराज का चुनावी स्वरूप और संदेश
जनसुराज पार्टी की यह पहली बड़ी राजनीतिक घोषणा मानी जा रही है। प्रशांत किशोर ने अब तक अपनी पार्टी को जनता के बीच “जन आंदोलन” के रूप में प्रस्तुत किया था। अब उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद यह साफ हो गया है कि जनसुराज पूर्ण रूप से चुनावी मैदान में उतर चुकी है। पार्टी का फोकस बिहार के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों पर रहेगा। पार्टी की रणनीति इस बात पर केंद्रित है कि पारंपरिक राजनीति के मुकाबले जनता को एक वैकल्पिक नेतृत्व प्रदान किया जाए। प्रशांत किशोर लंबे समय तक चुनावी रणनीतिकार के रूप में देशभर में काम कर चुके हैं, इसलिए उनकी राजनीतिक समझ और जमीनी नेटवर्क इस अभियान में बड़ी भूमिका निभा सकता है। जनसुराज द्वारा जारी 51 उम्मीदवारों की सूची ने बिहार की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। करगहर से रितेश पांडेय और अस्थावां से लता सिंह जैसे नामों ने पार्टी को चर्चा के केंद्र में ला दिया है। वहीं राघोपुर से प्रशांत किशोर के संभावित चुनाव लड़ने की संभावना ने इस चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है। अब देखना यह होगा कि जनसुराज का यह नया प्रयोग बिहार की पारंपरिक राजनीति में कितना असर डालता है। क्या प्रशांत किशोर अपनी रणनीति को वोटों में बदल पाने में सफल होंगे या नहीं, यह आने वाले महीनों में तय करेगा कि बिहार की सियासत में एक नई ताकत का उदय हुआ है या यह सिर्फ एक प्रयोग भर रह जाएगा।



