अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की लगातार चौथे दिन गिरावट जारी, 1 डॉलर की कीमत 80 रुपये तक पहुँची

देश। भारतीय रुपये में आज लगातार चौथे दिन रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई और यह एक डॉलर के मुकाबले 80 के करीब पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में अमेरिकी डॉलर के बढ़ते दबदबे और विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा की जाने वाली बिकवाली के चलते रुपये की कीमत में आगे और गिरावट आने की आंशका जताई जा रही हैं। गुरुवार को मुद्रा बाजार में कारोबार शुरू होते ही रुपया गिरकर 79.74 के नए निचले स्तर पर आ गया। इसे पहले रुपये का न्यूनतम स्तर 79.66 था। बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 79.62 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था। माना जा रहा हैं की डिमांड अधिक होने के कारण अमेरिकी डॉलर दूसरी करेंसी के मुकाबले लगातार मजबूत हो रहा है। दरअसल, मंदी की बढ़ती आशंकाओं ने अमेरिकी डॉलर की लिवाली को तेज कर दिया है और इससे दुनिया के सभी बाजारों में डॉलर की स्थिति मजबूत होती जा रही है। उधर अमेरिका में बढ़ती मुद्रास्फीति से अनुमान लगाया जा रहा है कि फेडरल रिजर्व महंगाई को काबू में लाने के लिए सख्त उपायों की घोषणा कर सकता है। बुधवार को जारी आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जून में 41 साल के उच्चतम स्तर 9.1 फीसद पर पहुंच गया।

वही अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़े जारी होने के बाद बाजार पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि फेड इस महीने अपनी अगली बैठक में उधारी लागत को एक प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। अमेरिका में बढ़ती मुद्रास्फीति से भारत सहित उभरते बाजारों में डॉलर के प्रवाह में और कमी आई है, जिससे रुपये को नुकसान हो रहा है। रुपये के लगातार गिरने के पीछे कमोडिटी के आयात का बढ़ता आयात भी जिम्मेदार है। भारत के कुल आयात में अकेले कच्चे तेल का हिस्सा 80 फीसद से भी अधिक है, जबकि कुल इंपोर्ट बिल में तेल का हिस्सा 50 फीसद से ज्यादा है। जब तक तेल के आयात पर इतनी निर्भरता बनी रहेगी, रुपये की गिरावट को थामना आसान नहीं होगा। इसके पीछे प्रतिकूल वैश्विक परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। मूडीज की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब मौसम, कोरोना महामारी, चीन में लॉकडाउन और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से इस साल वैश्विक आपूर्ति चेन तहस-नहस हो गई है और इसके चलते कीमतें बढ़ी हैं। रेटिंग एजेंसी मूडीज को आशंका है कि अगले कुछ महीनों में ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की कीमतें और भी बढ़ सकती हैं।

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