15 सितंबर से कर्नाटक में अल्पसंख्यकों के लिए शुरू होगा लैंगिक सर्वेक्षण, ट्रांसजेंडर समुदाय भी लिखा भाग, 45 दिनों तक चलेगा सर्वे

बेंगलुरु। कर्नाटक सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए एक नई पहल की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत राज्य में पहली बार लैंगिक अल्पसंख्यकों का सर्वेक्षण कराया जाएगा। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस योजना को सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। यह सर्वेक्षण 15 सितंबर से शुरू होकर पूरे 45 दिनों तक चलेगा।
सर्वेक्षण का उद्देश्य
इस सर्वे का मुख्य उद्देश्य राज्य में रहने वाले लैंगिक अल्पसंख्यकों और पूर्व देवदासी महिलाओं की वास्तविक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का पता लगाना है। सरकार का मानना है कि बिना सटीक आंकड़ों के इन वर्गों के लिए योजनाएं बनाना कठिन है। इसीलिए यह सर्वेक्षण उनकी समस्याओं, अवसरों और चुनौतियों को सामने लाने के लिए किया जा रहा है।
ट्रांसजेंडर समुदाय की भागीदारी
इस बार के सर्वेक्षण की खास बात यह है कि इसमें सिर्फ सरकारी अधिकारी ही नहीं बल्कि ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य भी प्रत्यक्ष रूप से भाग लेंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सर्वे अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी तरीके से किया जाए। सरकार का कहना है कि जब संबंधित समुदाय खुद इसमें शामिल होगा, तो परिणाम अधिक वास्तविक और भरोसेमंद मिलेंगे।
देवदासी महिलाओं का पुनः सर्वेक्षण
लैंगिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ सरकार ने पूर्व देवदासियों का भी सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है। यह पुनः सर्वेक्षण राज्य के 15 जिलों में होगा, जिनमें बेलगावी, विजयपुरा, बागलकोट, रायचूर, कोप्पल, धारवाड़, हावेरी, गडग, कलबुर्गी, यादगीर, चित्रदुर्ग, दावणगिरि, शिवमोग्गा, बल्लारी और विजयनगर शामिल हैं। इस सर्वे का उद्देश्य उन महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की वास्तविक तस्वीर सामने लाना है जो कभी देवदासी प्रथा का हिस्सा रही हैं।
सर्वेक्षण की प्रक्रिया
महिला एवं बाल विकास विभाग ने सर्वेक्षण की तैयारी पूरी कर ली है। इसे आसान और तेज बनाने के लिए दो मोबाइल एप विकसित किए गए हैं। साथ ही एक हेल्पलाइन नंबर (1800 599 2025) भी जारी किया गया है, जिससे लोग जानकारी प्राप्त कर सकते हैं या अपनी समस्याएं साझा कर सकते हैं। लैंगिक अल्पसंख्यकों का सर्वे सभी जिलों और तालुका के सरकारी अस्पतालों में किया जाएगा। वहीं, पूर्व देवदासी महिलाओं का सर्वे तालुका बाल विकास परियोजना अधिकारियों के कार्यालयों में होगा।
संभावित लाभ
सरकार का मानना है कि इस सर्वेक्षण से राज्य में मौजूद लैंगिक असमानताओं और भेदभाव की स्थिति का पता चल सकेगा। इससे यह भी स्पष्ट होगा कि ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी और अन्य लैंगिक समूहों को शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह, देवदासी प्रथा से जुड़ी महिलाओं की वास्तविक स्थिति सामने आएगी, जिससे उनके पुनर्वास की योजनाओं को और बेहतर बनाया जा सकेगा।
सामाजिक न्याय का राजनीतिक पहलू
हालांकि इस कदम को सामाजिक न्याय से जोड़ा जा रहा है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे एक सियासी दांव भी मानते हैं। उनका कहना है कि सिद्धारमैया सरकार इससे अल्पसंख्यक महिलाओं और लैंगिक अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पक्ष में आकर्षित करना चाहती है। इससे पहले भी राज्य सरकार ने मुस्लिमों को सरकारी ठेकों में 4 फीसदी आरक्षण देने का बिल पारित किया था। ऐसे में इस सर्वेक्षण को वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
सामाजिक महत्व
राजनीतिक पहलू से परे, यह कदम सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लैंगिक सर्वेक्षण से उन पूर्वाग्रहों और असमानताओं पर प्रकाश डाला जा सकेगा जो लंबे समय से समाज में छिपी हुई हैं। इससे नीति निर्माण अधिक सटीक और प्रभावी होगा और उन वर्गों तक मदद पहुंच सकेगी, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है। कर्नाटक का यह लैंगिक सर्वेक्षण राज्य की सामाजिक नीतियों में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह न केवल लैंगिक अल्पसंख्यकों और पूर्व देवदासी महिलाओं की वास्तविक स्थिति को उजागर करेगा, बल्कि उनके लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोलेगा। हालांकि, इसके राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थों पर बहस जारी रहेगी, लेकिन इतना तय है कि यह पहल समाज में बराबरी और न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
