पटना में गुरु पूर्णिमा पर गंगा घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, प्रशासन के पुख्ता इंतजाम

पटना। गुरु पूर्णिमा, जो भारतीय संस्कृति में श्रद्धा और गुरुभक्ति का प्रतीक पर्व है, इस बार पटना में भी पूरे उत्साह और धार्मिक भावनाओं के साथ मनाया गया। गुरुवार को आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर शहर के प्रमुख गंगा घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। हर तरफ आस्था और भक्ति का माहौल देखने को मिला, जहां लोग गंगा स्नान, पूजा-अर्चना और दान-पुण्य में लीन दिखाई दिए।
गंगा स्नान और पूजा-अर्चना का आयोजन
कंगन घाट, दीघा घाट, भद्र घाट समेत शहर के अन्य प्रमुख घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालु जुटने लगे। लोगों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की। पंचामृत से स्नान, चंदन का लेप, दीपदान, खीर का भोग और कर्पूर की आरती के साथ श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य को प्रसन्न करने का प्रयास किया। घाटों पर घंटी, शंख, डमरू और करताल की ध्वनि से माहौल पूरी तरह आध्यात्मिक हो गया।
प्रशासन ने किए पुख्ता इंतजाम
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा और व्यवस्था को लेकर पुख्ता प्रबंध किए गए थे। घाटों पर पुलिस बल की तैनाती, महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की गई थी। गंगा घाटों पर सफाई कर्मियों की टीम तैनात रही और यातायात को भी नियंत्रित किया गया, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो।
गुरु का महत्व और शुभ संयोग
गुरु पूर्णिमा के दिन इस बार मूल नक्षत्र, ऐन्द्र योग और गुरु-आदित्य योग का विशेष संयोग बना, जिसे ज्योतिषाचार्यों ने अत्यंत शुभ बताया। यह दिन अपने गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करने और उन्हें सम्मान देने का होता है। मान्यता है कि इस दिन गुरु का आशीर्वाद लेने से जीवन में उज्ज्वलता, ज्ञान और सफलता का आगमन होता है। केवल आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि माता-पिता, बड़े भाई-बहन, शिक्षक और मार्गदर्शकों का भी विशेष सम्मान किया जाता है।
वेदव्यास की जयंती के रूप में भी पूजनीय
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ऋषि पाराशर और देवी सत्यवती के पुत्र वेदव्यास का जन्म हुआ था। वेदव्यास ने ही चारों वेदों—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद—का वर्गीकरण किया और उन्हें क्रमबद्ध किया। उनके शिष्य पैला, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमंतु ने इस ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया।
आदियोगी के रूप में भगवान शिव का स्मरण
योगिक परंपरा के अनुसार, भगवान शिव को आदियोगी माना जाता है। मान्यता है कि शिव ने सप्तऋषियों को योग का पहला ज्ञान दिया था और उन्हें आत्मबोध की दिशा में अग्रसर किया। शिव ने जिस रूप में ज्ञान का प्रसार किया, उसे गुरु-स्वरूप में पूजा जाता है। इसलिए इस दिन योग परंपरा से जुड़े अनुयायी शिव को प्रथम गुरु मानते हुए विशेष पूजा करते हैं।
भक्ति और श्रद्धा से भरा रहा दिन
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर घर-घर में पूजा का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने भगवान विष्णु की स्तुति में विष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त का पाठ और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप किया। पूरे दिन व्रत, ध्यान और सत्संग जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें भाग लेने वाले लोगों को शांति, संतोष और आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति हुई। गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि गुरु के महत्व को स्मरण करने और उनकी शिक्षा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। पटना के गंगा घाटों पर उमड़ी भीड़ ने यह स्पष्ट कर दिया कि आधुनिक जीवन की आपाधापी में भी लोगों का अध्यात्म और परंपराओं से जुड़ाव आज भी जीवंत है।
