रेलवे तत्काल टिकट बुकिंग में फर्जीवाडे का खुलासा, टेलीग्राम बॉट्स से हो रही बुकिंग, बढ़ी दलालों की सक्रियता

नई दिल्ली। भारतीय रेलवे की तत्काल टिकट बुकिंग सेवा आपातकालीन परिस्थितियों में यात्रियों को राहत देने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन आज यह सेवा एजेंटों और तकनीकी गिरोहों के शिकंजे में फंस गई है। कुछ सेकेंड में टिकट बुक हो जाना अब एक सामान्य बात हो गई है, लेकिन यह सुविधा आम यात्रियों की पहुंच से दूर होती जा रही है।
टेलीग्राम और वॉट्सऐप पर सक्रिय रैकेट
जांच में सामने आया है कि टेलीग्राम और वॉट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म्स पर 40 से अधिक ऐसे ग्रुप्स सक्रिय हैं, जो टिकटों की अवैध बुकिंग का संगठित कारोबार चला रहे हैं। इन ग्रुप्स में हजारों एजेंट्स और तकनीकी जानकार शामिल हैं जो सरकार के नियमों को दरकिनार कर टिकट ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा दे रहे हैं।
बॉट्स से सेकेंडों में टिकट बुकिंग
इन रैकेट्स में ‘ड्रैगन’, ‘जेटएक्स’, ‘ओशन’, ‘ब्लैक टर्बो’ और ‘फॉर्मूला वन’ जैसे नामों से बॉट्स बेचे जाते हैं, जिनकी कीमत 999 से लेकर 5000 रुपये तक होती है। एक बार ग्राहक इन बॉट्स को खरीदता है, तो उन्हें टेलीग्राम चैनलों के जरिए पूरी गाइडलाइन दी जाती है कि बॉट को कैसे ब्राउजर में इंस्टॉल करना है और कैसे ऑटोफिल फीचर्स से टिकट बुक करना है।
बॉट्स चोरी कर रहे यूजर्स का डेटा
यह केवल टिकट बुकिंग तक ही सीमित नहीं है। ‘विनजिप’ नाम की एक एपीके फाइल का विश्लेषण करने पर यह सामने आया कि उसमें ट्रोजन मैलवेयर छिपा था, जो यूजर्स के निजी डेटा को चुराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यानी ये बॉट्स टिकट के बहाने साइबर ठगी का भी एक जरिया बन चुके हैं।
रेल मंत्रालय की नई पहल
रेल मंत्रालय ने 1 जुलाई 2024 से तत्काल टिकट बुकिंग को लेकर कई नए नियम लागू किए हैं। अब केवल आईआरसीटीसी की आधिकारिक वेबसाइट या ऐप के माध्यम से ही टिकट बुकिंग की जा सकती है। साथ ही यूजर का आधार कार्ड अकाउंट से लिंक होना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा तत्काल बुकिंग के पहले 30 मिनट तक किसी एजेंट को बुकिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी।
एंटी-बॉट सिस्टम और कार्रवाई
आईआरसीटीसी ने बॉट्स की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एंटी-बॉट सिस्टम तैयार किया है। इस सिस्टम के जरिए अब तक 2.5 करोड़ से अधिक फर्जी यूजर आईडी को निलंबित किया जा चुका है। एक रिपोर्ट के अनुसार, तत्काल बुकिंग के पहले पांच मिनट में आने वाले कुल लॉगिन प्रयासों में से 50 प्रतिशत से अधिक बॉट ट्रैफिक होता है, जो एक बड़ी चिंता का विषय है।
आम यात्रियों को हो रही परेशानी
इस तकनीकी शोषण का सीधा असर आम यात्रियों पर पड़ रहा है। जब वे टिकट बुक करना चाहते हैं तो उन्हें स्लो लोडिंग, ट्रांजैक्शन फेल और ऑक्यूपाइड सीट्स जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे ना केवल यात्रियों का भरोसा टूटता है, बल्कि आपातकालीन परिस्थिति में भी टिकट प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। रेलवे की नई नीतियां एक सकारात्मक कदम हैं, लेकिन जिस स्तर पर यह साइबर गिरोह काम कर रहे हैं, उसके मुकाबले अभी और सख्त तकनीकी निगरानी, कानूनों को और सख्त करने और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। जब तक इन रैकेट्स की जड़ तक नहीं पहुंचा जाएगा, तब तक आम यात्रियों को राहत मिलना मुश्किल होगा। सरकार को इस पूरे नेटवर्क को खत्म करने के लिए साइबर अपराध शाखा, आईटी एक्सपर्ट्स और कानूनी एजेंसियों को साथ लेकर एक ठोस रणनीति तैयार करनी चाहिए।

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