EXCLUSIVE : डैमेज कंट्रोल के लिए सीएम नीतीश ने संभाला मोर्चा, चुनौतियां बढ़ गई है सरकार के लिए

पटना (संतोष कुमार)। देश के विभिन्न राज्यों से बिहार पहुंचे अप्रवासी मजदूर बिहार विधानसभा में नीतीश सरकार के लिए चुनौती बनने जा रहे हैं। जी हां, आपने सही सुना पैदल, साइकिल, रिक्शा, ठेला, ट्रेन आदि विभिन्न साधनों से अपने गृह राज्य पहुंचे अप्रवासी मजदूरों के चेहरे पर नीतीश सरकार के खिलाफ जिस तरह का गुस्सा दिख रहा है, उससे यह चर्चा तेज हो गई है कि अगर यह मजदूर बिहार विधानसभा चुनाव तक बिहार में टिक गए तो जदयू- भाजपा सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश में जुट गए हैं लेकिन इस बीच उनके अपने विधायक ने अप्रवासी मजदूरों पर जिस प्रकार की टिप्पणी की है वह कहीं नीतीश सरकार के मेहनत पर पानी न फेर दे। हालांकि शेखपुरा विधायक ने अपनी सफाई में कहा है कि उन्होंने एक चाचा-भतीजा के नाते क्वॉरेंटाइन सेंटर में उक्त मजदूर को ‘अपने बाप से रोजगार मांगने’ वाली बात कही थी।
इधर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश सरकार हो या राजद बिहार के इन दोनों लीडिंग पार्टियों ने मजदूरों के रोजगार के लिए बीते 30 सालों में कुछ नहीं किया। यही वजह रही कि लाखों की संख्या में मजदूर बिहार से रोजगार की खातिर पलायन करने को मजबूर हुए। आज जब मजदूरों के जीवन पर बन आई है, तब बिहार की सत्ताधारी व विपक्षी पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने को आगे आई है, हालांकि बता दें यह कोई बिहार के लिए नई बात नहीं है। मौत और भूख पर यहां राजनीति वर्षों से होती रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह से कोरोना संक्रमण को लेकर देशभर में लगाए गए लॉक डाउन के कारण लाखों प्रवासी मजदूरों का रोजगार छीन गया है, उनके पास रहने-खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। इन परिस्थितियों को देखते हुए लाखों की संख्या में बिहार से गए अप्रवासी मजदूर अब अपने गृह राज्य पहुंच रहे हैं लेकिन लॉक डाउन के महीना गुजर जाने के बाद केंद्र एवं राज्य सरकार ने इन फंसे अप्रवासी मजदूरों को वापस लाने के लिए ट्रेनें चलाई। उक्त ट्रेन चलने के पूर्व हजारों की संख्या में मजदूर ठेला, साइकिल, यहां तक की पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर अपने गृह राज्य पहुंचे। इस दौरान उनके चेहरे पर दोनों सरकारों के खिलाफ गुस्सा स्पष्ट रूप से सामने आए। उन्होंने तो यहां तक राज्य सरकार को चुनौती दे दी कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हालांकि विश्लेषकों का यह भी मानना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे के सामने बिहार में कोई बड़ा चेहरा नहीं है इसलिए अभी इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता।
विश्लेषकों का कहना है कि बाहर से लौटे हजारों अप्रवासी मजदूरों को बिहार के विभिन्न जिलों एवं प्रखंडों में बनाए गए क्वॉरेंटाइन सेंटरों में रखा गया है। जहां सेंटरों में फैली अराजकता को लेकर प्रतिदिन खबरें सामने आ रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ऐसा लगा की अगर यह मजदूर क्वॉरेंटाइन सेंटरों में फैली अराजकता का शिकार होते हैं तो उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि इन प्रवासी मजदूरों की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में है। उन्होंने परिस्थितियों को देखते हुए डैमेज कंट्रोल की कोशिश में जुट गए और खुद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए डायरेक्ट क्वॉरेंटाइन सेंटरों के अंदर दाखिल हो रहे हैं और अप्रवासी मजदूरों से बात कर रहे हैं। सीएम नीतीश पूछ रहे हैं कि आपको कोई दिक्कत तो नहीं, वह प्रवासियों को भरोसा दिला रहे हैं कि अब उन्हें रोजगार के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं। आप लोगों को रोजगार की व्यवस्था राज्य सरकार यहीं करेगी। सीएम नीतीश गुस्साए प्रवासी मजदूरों को अपने पक्ष में करने में कहां तक सफल हो पाते हैं यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन यह भी तय है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा की सरकार को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। अगर यह प्रवासी मजदूर बिहार से पलायन नहीं करते हैं तो इनके चेहरे पर जो गुस्सा केंद्र एवं राज्य सरकार के खिलाफ दिखी है उसे भुनाने में विपक्षी पार्टियां कहीं से भी पीछे नहीं रहेगी।
