राज्य की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई और मुख्यमंत्री को सिर्फ अपनी कुर्सी की चिंता है : आरसीपी सिंह
पटना। जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और महागठबंधन की सरकार पर हमलावर बने हुए हैं। आरसीपी हर दिन अलग-अलग मुद्दों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेर रहे हैं। शराबबंदी और पटना में बालू माफिया की दबंगई के बाद अब आरसीपी ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाया है। आरसीपी ने कहा है कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है और मुख्यमंत्री को सिर्फ और सिर्फ अपनी कुर्सी की चिंता है। दरअसल, आरसीपी सिंह पिछले कुछ दिनों से विभिन्न मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार को आईना दिखा रहे हैं। गुरुवार को आरसीपी ने मुख्यमंत्री से पूछा है कि बिहार में ध्वस्त हो चुकी शिक्षा व्यवस्था के लिए कौन जिम्मेवार है। आरसीपी ने ट्वीट कर लिखा कि,“बिहार में शिक्षा का बुरा हाल ! नीतीश बाबू ,आप तो जानते ही हैं कि बिहार ज्ञान की भूमि रही है। नालंदा विश्वविद्यालय, उदंतपुरी विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय जैसी विश्व विख्यात संस्थाएं बिहार में ही थीं। भारतवर्ष के साथ-साथ विदेशों के विद्यार्थी भी यहां ज्ञान अर्जन करते थे। आपको पता है न नीतीश बाबू, कि आज बिहार में एक भी शैक्षणिक स्थान की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर नहीं है। मुख्यमंत्री महोदय कि विगत 33 वर्षों में बिहार पर या तो श्रीमान लालू जी के परिवार ने या आपने ही शासन किया है। आपने कभी सोचा कि कैसे बिहार शिक्षा के क्षेत्र में इतना पिछड़ गया ? आज बिहार की शिक्षा व्यवस्था बिलकुल ध्वस्त हो चुकी है। सरकारी विद्यालयों में प्राथमिक, माध्यमिक एवं इंटर तक की शिक्षा का कोई स्तर ही नहीं रहा है। उच्च शिक्षा की स्थिति तो और भी बत्तर है ! विद्यार्थियों का ज्ञान न्यूनतम स्तर पर भी नहीं है। शिक्षकों को अध्यापन को छोड़कर अन्य कार्यों में व्यस्त रखा जाता है- कभी जनगणना,कभी पशु गणना,कभी जातीय गणना ,कभी चुनाव संबंधित कार्य ,कभी शराबबंदी इत्यादि। जबकि शिक्षकों का पहला धर्म एवं कर्तव्य विद्यार्थियों को ज्ञानार्जन कराना है परंतु आप उनसे कौन-कौन सा काम करा रहे हैं। पूर्व जेडीयू अध्यक्ष ने लिखा कि नीतीश बाबू, हम लोग जब विद्यार्थी थे, तो बिहार में शिक्षा की ऐसी स्थिति नहीं थी। मैंने तथा मेरे जैसे हज़ारों साथियों ने अपनी प्राथमिक,माध्यमिक एवं हाई स्कूल तक की शिक्षा गाँव के स्कूल में प्राप्त की थी। उस समय विद्यालयों में भवन एवं अन्य सुविधाओं का अभाव था परंतु शिक्षकों में अध्यापन के प्रति इतनी लगन थी कि उस समय शिक्षा का स्तर उच्च कोटि का था।