बिहार के युवाओं में नेतृत्व क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति में आई कमी, एनसीईआरटी की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

नई दिल्ली/पटना। हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने बिहार के किशोरों और युवाओं को लेकर एक गंभीर और सोचने पर मजबूर करने वाला पहलू सामने रखा है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और एनसीईआरटी द्वारा किए गए एक व्यापक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि बिहार के लगभग 45 प्रतिशत युवा निर्णय लेने और नेतृत्व करने की क्षमता से वंचित हैं।
सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष
इस सर्वेक्षण में 14 से 25 वर्ष के बीच के 10 लाख से अधिक किशोर और युवा शामिल किए गए। इनमें स्कूली छात्र, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवा और कॉलेज विद्यार्थी शामिल थे। फरवरी से मार्च 2025 तक चले इस 50 दिवसीय सर्वेक्षण में लगभग 4 लाख से अधिक युवाओं ने यह स्वीकार किया कि उन्हें किसी भी परिस्थिति में नेतृत्व करने में संकोच होता है। वहीं, करीब इतने ही किशोरों ने माना कि वे अपने जीवन के निर्णय लेने में पूरी तरह से अपने माता-पिता पर निर्भर हैं।
कम होती नेतृत्व क्षमता: एक चिंताजनक गिरावट
सर्वे रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि पिछले पांच वर्षों में बिहार में नेतृत्व क्षमता के स्तर में लगातार गिरावट आई है। जहां पहले यह प्रतिशत 66 था, अब घटकर केवल 55 प्रतिशत रह गया है। इसका अर्थ यह है कि हर दूसरा युवा नेतृत्व के लिए तैयार नहीं है। इसी तरह, निर्णय लेने की क्षमता में भी लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। यह दर्शाता है कि आत्मनिर्भरता की दिशा में युवाओं के बीच आत्मविश्वास की भारी कमी है।
निर्णय लेने में संकोच और भय
करीब 5 लाख युवाओं ने यह भी बताया कि वे किसी ठोस निर्णय को लेने से डरते हैं। उन्हें यह चिंता सताती है कि कहीं उनका निर्णय गलत न हो जाए या इसके नकारात्मक परिणाम उन्हें झेलने न पड़ें। इस मानसिकता के चलते वे हर छोटे-बड़े निर्णय में भी परिवार की सहमति पर निर्भर रहते हैं। यह मानसिक और भावनात्मक विकास में बाधा उत्पन्न करता है।
शिक्षा व्यवस्था और पारिवारिक माहौल में बदलाव जरूरी
सर्वेक्षण में यह भी सुझाव दिया गया है कि स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा, जीवन कौशल और नेतृत्व विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चों को ऐसे प्रेरणादायक व्यक्तित्वों की कहानियां सुनाना चाहिए जिन्होंने अपने आत्मविश्वास से सफलता पाई हो। सप्ताह में एक दिन छात्रों को आत्मविश्वास बढ़ाने वाले कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए।
अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका
काउंसलर कुमुद सिंह के अनुसार, बच्चों में आत्मनिर्भरता लाने के लिए अभिभावकों की भूमिका बेहद अहम है। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों को छोटे-छोटे निर्णय स्वयं लेने दें और गलतियों से सीखने के अवसर प्रदान करें। इसी तरह, शिक्षकों को भी बच्चों की मानसिकता को समझते हुए उन्हें निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
एक व्यापक सामाजिक चिंता
यह समस्या केवल बिहार की नहीं है, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी देखी जा रही है। हालांकि, बिहार में यह गिरावट अन्य राज्यों की तुलना में अधिक चिंताजनक है। पिछले वर्षों की तुलना में यहां नेतृत्व और निर्णय क्षमता में 10 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है, जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। बिहार में किशोरों और युवाओं के मानसिक, सामाजिक और नेतृत्व विकास की दिशा में गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है। शिक्षा नीति में बदलाव, अभिभावकों की जागरूकता और समाजिक संस्थाओं की सक्रिय भूमिका के बिना इस स्थिति में सुधार संभव नहीं है। यह रिपोर्ट न केवल सरकार के लिए चेतावनी है, बल्कि समाज के हर वर्ग को सोचने और जागरूक होकर जिम्मेदारी निभाने की मांग भी करती है।
