देश में 1 जुलाई से लागू होंगे नए आपराधिक कानून, मॉब लिंचिंग और नाबालिग से गैंगरेप पर होगी फांसी

  • अंग्रेजों का आईपीसी नहीं, न्याय संहिता नाम होगा, अधिसूचना जारी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के लागू होने की तारीख 1 जुलाई, 2024 को अधिसूचित की है। भारत की संसद ने भारतीय न्याय संहिता अधिनियम (बीएनएस), 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसएस), 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएसएस), 2023 के अधिनियमन के माध्यम से अपने औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानूनों में एक महत्वपूर्ण बदलाव पेश किया है। ये नए कानून क्रमशः 1860 के दंड संहिता, 1872 के साक्ष्य अधिनियम और 1973 के आपराधिक प्रक्रिया संहिता का स्थान लेते हैं। भारतीय न्याय संहिता, 2023 की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं। तीनों नए आपराध‍िक कानून भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
एक जुलाई से लागू होंगे 3 नए क्रिमिनल लॉ; 420 नहीं, 316 कहलाएंगे धोखेबाज
अब इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो जाएगा। नए कानून के लागू होने के बाद जो धाराएं अपराध की पहचान बन चुकी थीं, उनमें भी बदलाव होगा। जैसे हत्या के लिए लगाई जाने वाली आईपीसी की धारा 302 अब धारा 101 कहलाएगी। ठगी के लिए लगाई जाने वाली धारा 420 अब धारा 316 होगी। हत्या के प्रयास के लिए लगाई जाने वाली धारा 307 अब धारा 109 कहलाएगी। वहीं दुष्कर्म के लिए लगाई जाने वाली धारा 376 अब धारा 63 होगी।
सशस्त्र विद्रोह करने और देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर जेल
बिल पेश करते हुए दिसंबर में लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अंग्रेजों का बनाया राजद्रोह कानून, जिसके चलते तिलक, गांधी, पटेल समेत देश के कई सेनानी कई बार 6-6 साल जेल में रहे। वह कानून अब तक चलता रहा। राजद्रोह की जगह उसे देशद्रोह कर दिया गया है, क्योंकि अब देश आजाद हो चुका है, लोकतांत्रिक देश में सरकार की आलोचना कोई भी कर सकता है। अगर कोई देश की सुरक्षा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। अगर कोई सशस्त्र विरोध करता है, बम धमाके करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी, उसे आजाद रहने का हक नहीं, उसे जेल जाना ही पड़ेगा। कुछ लोग इसे अपनी समझ के कपड़े पहनाने की कोशिश करेंगे, लेकिन मैंने जो कहा उसे अच्छी तरह समझ लीजिए। देश का विरोध करने वाले को जेल जाना होगा।
बच्ची से रेप के दोषी को फांसी की सजा
पहले रेप की धारा 375, 376 थी, अब जहां से अपराधों की बात शुरू होती है, उसमें धारा 63, 69 में रेप को रखा गया है। गैंगरेप को भी आगे रखा गया है। बच्चों के खिलाफ अपराध को भी आगे लाया गया है। मर्डर 302 था, अब 101 हुआ है। 18 साल से कम उम्र की बच्ची से रेप में आजीवन कारावास और मौत की सजा का प्रावधान है। गैंगरेप के दोषी को 20 साल तक की सजा या जिंदा रहने तक जेल।
3 विधेयकों से क्या बदलाव हुए?
कई धाराएं और प्रावधान बदल गए हैं। आईपीसी में 511 धाराएं थीं, अब 356 बची हैं। 175 धाराएं बदल गई हैं। 8 नई जोड़ी गईं, 22 धाराएं खत्म हो गई हैं। इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं बची हैं। 160 धाराएं बदली गईं हैं, 9 नई जुड़ी हैं, 9 खत्म हुईं। पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान हो गया है, जो पहले नहीं था। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा। देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।
आपराधिक कानून के ये होंगे मुख्य उद्देश्य
मंत्रालय की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक इन तीन अपराधिक कानून का उद्देश्य
इन मुद्दों के महत्व पर जोर देते हुए महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को एक अध्याय में समेटना होगा। धारा 511 से घटाकर 358 करना, दक्षता के लिए कोड को सुव्यवस्थित करना। वही छोटे-मोटे अपराधों के लिए सजा के रूप में सामुदायिक सेवा की शुरूआत, न्याय के प्रति अधिक सुधारात्मक दृष्टिकोण की ओर बदलाव का प्रतीक बनेगा। भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए उकसाने का अपराधीकरण, भारतीय कानून के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करना है। समसामयिक सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए झूठे बहाने के तहत यौन संबंध बनाना और छीना-झपटी जैसे नए अपराध पेश किए गए हैं। वही कुछ अपराधों का लिंग-तटस्थ सुधार और आधुनिक कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप संगठित अपराध और आतंकवादी कृत्यों के प्रावधानों को शामिल करना। चोरी, गंभीर चोट और जल्दबाज़ी या लापरवाही से किए गए कृत्यों सहित विभिन्न अपराधों के लिए दंड बढ़ाए गए हैं, जो सख्त रोकथाम की ओर बदलाव का संकेत देते हैं। ‘बच्चे’ और ‘ट्रांसजेंडर’ के लिए परिभाषाओं की शुरूआत, और आधुनिक वास्तविकताओं के अनुकूलन को दर्शाते हुए, अमूर्त और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को शामिल करने के लिए ‘चल संपत्ति’ और ‘दस्तावेज़’ की परिभाषाओं को अद्यतन किया गया है। ये सुधार समेकन, समसामयिक प्रासंगिकता, लिंग तटस्थता और प्रतिशोध और सुधार के बीच संतुलन पर ध्यान देने के साथ भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाने की दिशा में एक बड़े कदम का संकेत देते हैं।

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