महागठबंधन में तकरार पर बीजेपी का हमला, कहा- ये कच्ची मिट्टी का घड़ा, किसी भी समय टूट सकता है
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का राजनीतिक माहौल दिनों-दिन गर्माता जा रहा है। इस बार चुनाव दो चरणों में होने हैं, लेकिन सबसे अधिक चर्चा महागठबंधन की अंदरूनी खींचतान को लेकर हो रही है। कांग्रेस और राजद के बीच सीट बंटवारे की असहमति ने न केवल कार्यकर्ताओं को असमंजस में डाल दिया है, बल्कि गठबंधन की एकजुटता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भाजपा ने इस स्थिति पर तंज कसते हुए महागठबंधन को “कच्ची मिट्टी का घड़ा” बताया है, जो किसी भी समय टूट सकता है।
सीट बंटवारे पर असहमति
महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की समस्या चुनावी रणनीति को उलझा रही है। कई सीटों पर अब भी स्पष्टता नहीं है कि कौन-सा दल किस सीट से लड़ेगा। कांग्रेस और राजद दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, जिसके कारण कई जगह सीधा मुकाबला उन्हीं के बीच हो रहा है। यह स्थिति गठबंधन की मजबूती पर सीधा प्रहार करती है। उदाहरण के तौर पर, कहलगांव में कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा और राजद के रजनीश यादव आमने-सामने हैं। इसी तरह बछवारा में कांग्रेस के गरीबदास और सीपीआई के अवधेश राय, जबकि वैशाली में कांग्रेस के संजीव कुमार और राजद के अजय कुशवाहा में सीधी टक्कर तय है। जाले, लालगंज, घोसी और चनपटिया जैसी सीटों पर भी यही स्थिति देखने को मिल रही है। इससे यह साफ झलकता है कि गठबंधन के भीतर तालमेल की भारी कमी है।
वैशाली बनी सियासी केंद्र
वैशाली विधानसभा सीट इस पूरे विवाद का केंद्र बन गई है। यहां कांग्रेस उम्मीदवार संजीव कुमार ने 15 नवंबर को नामांकन दाखिल किया, जबकि राजद उम्मीदवार अजय कुशवाहा 17 नवंबर को नामांकन करेंगे। इस दोहरी दावेदारी ने स्थानीय कार्यकर्ताओं में गहरी उलझन पैदा कर दी है। दोनों ही उम्मीदवार अपने-अपने दलों के प्रति निष्ठावान हैं और किसी भी स्थिति में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। जनता के बीच भी यह चर्चा है कि जब गठबंधन के भीतर ही ऐसी असहमति है, तो वे सत्ता में जाकर कितने सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम कर पाएंगे।
कांग्रेस और राजद की खींचतान
गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी यही दिख रही है कि दोनों प्रमुख दल, कांग्रेस और राजद, सीटों पर समझौते के बजाय टकराव की राह पर हैं। कांग्रेस के कई नेता खुले तौर पर कह चुके हैं कि वे किसी भी परिस्थिति में अपनी सीट नहीं छोड़ेंगे। दूसरी ओर, राजद के उम्मीदवारों ने भी अपने सिंबल के साथ मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया है। इस टकराव से कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति बनी हुई है, और चुनाव प्रचार में भी दिशा का अभाव दिखाई दे रहा है।
भाजपा का राजनीतिक हमला
भाजपा ने महागठबंधन की इस अंदरूनी कलह पर कड़ा प्रहार किया है। भाजपा प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि यह गठबंधन “कच्ची मिट्टी का घड़ा” है, जो कभी भी बिखर सकता है। उनके अनुसार, जनता सब देख रही है और इस असंगठित गठबंधन पर भरोसा नहीं करेगी। भाजपा इस मौके को अपने चुनाव प्रचार में भुनाने की रणनीति बना रही है। वे महागठबंधन की कमजोरी को जनता के सामने ऐसे पेश करना चाहती है, जिससे मतदाताओं में यह संदेश जाए कि विपक्ष खुद ही एकजुट नहीं है, तो राज्य का नेतृत्व कैसे संभालेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की दरारें महागठबंधन की चुनावी रणनीति को कमजोर बना सकती हैं। गठबंधन की असंगठितता भाजपा और एनडीए के लिए अवसर का काम करेगी। यदि कांग्रेस और राजद के बीच सीधी टक्कर जारी रही, तो मतों का बंटवारा निश्चित है, जिसका लाभ एनडीए उम्मीदवारों को मिलेगा। विश्लेषकों के अनुसार, इस स्थिति का असर न केवल सीटों पर पड़ेगा, बल्कि कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी भारी असर डालेगा।
कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भ्रम
गठबंधन के भीतर यह टकराव कार्यकर्ताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर किस उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करें। कांग्रेस और राजद दोनों ही दल अपने प्रत्याशियों को लेकर मैदान में उतरे हैं और अपने-अपने प्रचार अभियानों में व्यस्त हैं। इससे जमीनी स्तर पर समन्वय पूरी तरह बिगड़ गया है। जनता के बीच भी यह संदेश जा रहा है कि महागठबंधन सत्ता की लड़ाई में तो साथ है, लेकिन विचार और रणनीति के स्तर पर एक नहीं।
महागठबंधन की बड़ी चुनौती
इस चुनाव में महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने अंदरूनी मतभेदों को सुलझाने की है। यदि कांग्रेस और राजद अपने-अपने उम्मीदवारों को लेकर पीछे नहीं हटे, तो न केवल उनकी सीटों की स्थिति कमजोर होगी, बल्कि गठबंधन की साख पर भी सवाल खड़े होंगे। बिहार जैसे राज्य में जहां जातीय और क्षेत्रीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं, वहां गठबंधन की एकता ही सबसे बड़ा बल होती है। अगर यह एकता ही कमजोर पड़ जाए, तो जनता का विश्वास जीतना मुश्किल हो जाता है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के सामने चुनौती केवल एनडीए जैसी मजबूत विपक्षी ताकत नहीं है, बल्कि उसकी अपनी आंतरिक कलह भी है। सीट बंटवारे में असहमति, कांग्रेस और राजद की सीधी टक्कर और कार्यकर्ताओं में भ्रम जैसी स्थितियां गठबंधन की चुनावी संभावनाओं को कमजोर कर रही हैं। अगर समय रहते इन दरारों को नहीं भरा गया, तो इसका सीधा असर महागठबंधन की सफलता पर पड़ेगा। बिहार की जनता अब यह बारीकी से देख रही है कि कौन-सा गठबंधन अधिक संगठित, अनुशासित और जनता के प्रति जवाबदेह है। अंततः, इस चुनाव में महागठबंधन की असली परीक्षा उसकी एकजुटता और रणनीतिक समझ पर ही निर्भर करेगी।


