October 31, 2025

24 को शपथ लेंगे देश के नए सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत, 14 महीने का रहेगा कार्यकाल

नई दिल्ली। देश की न्यायपालिका में एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत को भारत का 53वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। वे 24 नवंबर को पद की शपथ लेंगे। वे मौजूदा सीजेआई भूषण रामकृष्ण गवई का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल 23 नवंबर को समाप्त हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के जजों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है। जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल लगभग 14 महीने का होगा और वे 9 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्त होंगे।
राज्य से सर्वोच्च पद तक की प्रेरणादायक यात्रा
जस्टिस सूर्यकांत का जीवन किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं है। वे हरियाणा के हिसार जिले के पेटवाड़ नामक छोटे से गांव में एक साधारण परिवार में पैदा हुए। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। बचपन में संसाधनों की कमी थी; यहां तक कि वे जिस प्राथमिक स्कूल में पढ़ते थे, वहां बैठने के लिए बेंच भी नहीं होती थी। आठवीं कक्षा तक उन्होंने गांव में ही पढ़ाई की और घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए वे खाली समय में खेतों में काम भी करते थे। शहर उन्होंने पहली बार उस समय देखा जब वे दसवीं की परीक्षा देने हांसी कस्बे गए। लेकिन कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने शिक्षा के प्रति अपने समर्पण को नहीं छोड़ा और आगे चलकर कानून की पढ़ाई की। धीरे-धीरे वे वकालत के क्षेत्र में उभरते गए और उनकी प्रतिभा और दृढ़ता ने उन्हें न्यायपालिका में उच्च पदों तक पहुंचाया।
न्यायपालिका में दो दशक की उल्लेखनीय सेवा
जस्टिस सूर्यकांत पिछले 20 वर्षों में न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा चुके हैं। वे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में जज रहे और अपने कार्यकाल के दौरान कई संवैधानिक और सामाजिक महत्व के मामलों में अपने न्यायिक दृष्टिकोण की छाप छोड़ी। बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया, जहां उनकी पहचान एक संवेदनशील, संतुलित और दूरदर्शी न्यायाधीश के रूप में बनी।
महत्वपूर्ण फैसलों में उनकी भूमिका
जस्टिस सूर्यकांत कई ऐसी संवैधानिक पीठों का हिस्सा रहे हैं जिनके निर्णयों ने देश की न्याय व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रभावित किया। पेगासस जासूसी मामले में उन्होंने उस बेंच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने मुद्दे की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की कमेटी गठित की। उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर अवैध निगरानी को उचित नहीं ठहराया जा सकता। वे उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने 1967 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा न देने वाले फैसले को खारिज कर पुनर्विचार का रास्ता खोला। इसी प्रकार, राजद्रोह कानून से जुड़े मामले में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। बेंच ने ब्रिटिश काल के इस कानून को स्थगित रखने और समीक्षा पूरी होने तक कोई नई एफआईआर दर्ज न करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने के निर्देश का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है। यह निर्णय न्यायपालिका में लैंगिक समानता की दिशा में बड़ा कदम माना जाता है। आर्टिकल 370 के मामले में भी वे उस बेंच का हिस्सा थे जिसने 2023 में जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के फैसले को मान्य रखा।
चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा
जस्टिस सूर्यकांत ने चुनावी पारदर्शिता को मजबूत करने वाले कई फैसलों में भी योगदान दिया। बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के बाद मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख नामों की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश उनकी पारदर्शी चुनाव व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जस्टिस सूर्यकांत का सीजेआई के पद तक पहुंचना न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है बल्कि यह उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखते हैं। उनका कार्यकाल संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण, न्यायपालिका में पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों के सुदृढ़ीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होने की उम्मीद है। देश उनसे संतुलित और दूरदर्शी न्यायिक नेतृत्व की अपेक्षा करता है।

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