कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र मंगलवार से शुरू, चैत्र में दुर्गा पूजन से ऋतु परिवर्तन का कुप्रभाव नहीं

  • नौ दिनों तक माता के अलग अलग रूपों की होगी पूजा

पटना। सनातन धर्मावलंबियों का अति महत्वपूर्ण वासंतिक नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा मंगलवार से शुरू होगा। नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाएगी। कल से ही हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2078 भी शुरू होगा। ब्रह्म पुराण के मुताबिक ब्रह्मा ने इसी संवत में सृष्टि के निर्माण की शुरूआत की थी। विक्रम संवत में प्रकृति की खूबसूरती दिखती है। प्रकृति कई तरह का सृजन करती है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर कई शुभ योग भी बन रहा है। इस नवरात्रि में चार रवियोग, एक सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग, एक सिद्धि योग तथा एक सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। ऐसे शुभ संयोग में नवरात्रि पर देवी उपासना करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। यह नवरात्रि धन और धर्म की वृद्धि के लिए खास होगी। भक्त इस पूरे नवरात्र माता की कृपा पाने के लिए दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, बीज मंत्र का जाप, भगवती पुराण आदि का पाठ करेंगे।
चैत्र में दुर्गा पूजन से ऋतु परिवर्तन का कुप्रभाव नहीं
ज्योतिषाचार्य राकेश झा के अनुसार चैत्र प्रतिपदा से हिन्दू कैलेंडर के नये वर्ष विक्रम संवत की शुरूआत होती है। इसके साथ ही ऋतु परिवर्तन भी होता है। इससे गर्मी बढ़ती है। चैती नवरात्र पूजन से श्रद्धालु नियम, संयम, शुद्ध आहार, विचार रखते हैं। बीमारी से बचाव के लिए व्रत करना सेहत के लिए लाभकारी होता है। इससे मौसमी परिवर्तन का कुप्रभाव नहीं पड़ता है। इस मास में दलहन, गेहूं, तिलहन आदि के साथ सर्राफा व्यापार भी प्रभावित होता है। प्रतिपदा पर ही राम और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। मनु एवं सतरूपा ने सृष्टि के निर्माण की शुरूआत की थी।
वसंत ऋतु में आदि शक्ति की पूजा अति फलदायी
पंडित झा के मुताबिक आदि शक्ति के नौ रूपों की पूजा वसंत ऋतु में काफी फलदायी होती है। चैत्र नवरात्रि सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक बताया गया है। इसे आत्मशुद्धि और मुक्ति का भी आधार माना जाता है। ऋतु परिवर्तन के कारण वर्षभर में चार नवरात्र होते हैं माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन माह का नवरात्र। ऋतुओं के परिवर्तन से मनुष्य का स्वास्थ्य तथा मन:स्थिति प्रभावित होता है। व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव को दूर करने, स्वस्थ्य रहने के लिए इन चारों नवरात्र में मां दुर्गा की आराधना, अनुष्ठान किया जाता है।
कलश पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि का वरदान
ज्योतिषी झा ने शास्त्रों का हवाला देते हुए बताया कि चैत्र नवरात्र में कलश स्थापन का महत्व अति शुभ फलदायक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है, इसीलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है। नवरात्रि में कलश स्थापना का खास महत्व होता है। इसलिए इसकी स्थापना सही और उचित मुहूर्त में करना फलदायी होगा। ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है।
घोड़ा पर आयेंगी माता, नरवाहन पर विदाई
आचार्य राकेश झा ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वासंतिक नवरात्र अश्विनी नक्षत्र एवं सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में आरंभ होकर 22 अप्रैल गुरुवार को मघा नक्षत्र व सिद्धि योग में विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में माता अपनों भक्तों को दर्शन देने के लिए घोड़ा पर आ रही है। माता के इस आगमन से श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी। इस आगमन से राजनीति क्षेत्र में उथल-पुथल होंगे। इसके साथ ही माता की विदाई नरवाहन पर होगी। माता के इस विदाई से भक्तों के लिए शुभ और सौख्यता का वरदान मिलेगा।


नवरात्र में सभी ग्रहों की शांति की होगी पूजा
पंडित गजाधर झा के अनुसार वासंतिक नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा में हर ग्रह की शांति की पूजा की जाएगी। प्रतिपदा पर शैलपुत्री की आराधना से सूर्य ग्रह की शांति की जाएगी। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा से राहू ग्रह की शांति, तृतीय तिथि पर चंद्रघंटा की पूजा से चंद्रमा की शांति, चतुर्थ कूष्मांडा की पूजा से केतु ग्रह की शांति, पंचम स्कंदमाता की पूजा से मंगल की शांति, कात्यायनी की पूजा से वृष की शांति, अष्टम कालरात्रि की पूजा से शनि ग्रह की शांति, अष्टम महागौरी की पूजा से बृहस्पति की और नवम सिद्धिदात्री की पूजा से शुक्र ग्रह की शांति की जाएगी।
20 को पुष्य नक्षत्र में महाष्टमी व महानवमी पूजन 21 को
इस नवरात्रि की पूजा इस बार पूरे 9 दिनों का होगा। महाष्टमी की पूजा 20 अप्रैल मंगलवार को पुष्य नक्षत्र में तथा महानवमी 21 अप्रैल बुधवार को अश्लेषा नक्षत्र में होगी। चैत्र नवरात्रि में भगवान विष्णु के दो-दो अवतार मत्स्यावतार और रामावतार होता है। साथ ही सूर्योपासना का पर्व चैती छठ, हनुमानजी का पूजन भी होता है।
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
सामान्य मुहूर्त : प्रात: 05:43 बजे से 08:43 बजे तक
चर योग : सुबह 08:40 बजे से 10:15 बजे तक
लाभ योग : सुबह 10:15 बजे से 11:50 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 11:36 बजे से 12:24 बजे तक
गुली व अमृत मुहूर्त : दोपहर 11:50 बजे से 01:25 बजे तक
अपनी राशि के अनुसार करें मां की आराधना
मेष : रक्त चंदन, लाल पुष्प और सफेद मिष्ठान्न अर्पण करें।
वृष : पंचमेवा, सुपारी, सफेद चंदन, पुष्प चढ़ाएं।
मिथुन : केला, पुष्प, धूप से पूजा करें।
कर्क : बताशा, चावल, दही का अर्पण करें।
सिंह : तांबे के पात्र में रोली, चंदन, केसर, कर्पूर के साथ आरती करें।
कन्या : फल, पान पत्ता, गंगाजल मां को अर्पित करें।
तुला : दूध, चावल, चुनरी चढ़ाएं और घी के दीपक से आरती करें।
वृश्चिक : लाल फूल, गुड़, चावल और चंदन के साथ पूजा करें।
धनु : हल्दी, केसर, तिल का तेल, पीत पुष्प अर्पित करें।
मकर : सरसों तेल का दीया, पुष्प, चावल, कुमकुम और हलवा अर्पण करें।
कुंभ : पुष्प, कुमकुम, तेल का दीपक और फल अर्पित करें।

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