महानवमी कल; हवन, पुष्पांजलि व कन्या पूजन से साथ करेंगे चैत्र नवरात्र का समापन

पटना। वासंतिक नवरात्र के अष्टम दिन मंगलवार को माता के उपासक ने सर्वसिद्धि को देने वाली माता महागौरी की पूजा किया। सीमित संसाधनों में माता के अनन्य भक्तों ने माता का श्रृंगार पूजा एवं कमल, अपराजिता, उरहुल आदि के पुष्प से देवी मां का पुष्पांजलि कर देश में फैले इस कोरोना महामारी से मुक्ति की प्रार्थना किए। वही कल माता सिद्धिदात्री की उपासना की जायेगी। चैत्र शुक्ल महानवमी में हवन, पुष्पांजलि व कन्या पूजन कर इस नवरात्र का समापन होगा।
देवी के पूजा का आध्यात्मिक महत्व
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य आचार्य राकेश झा ने मार्कण्डेय पुराण के हवाले से बताया कि चैत्र नवरात्रि के अष्टम दिवस में देवी महागौरी की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते है। महागौरी की पूजा से शीघ्र विवाह का वरदान तथा वैवाहिक जीवन भी मधुर हो जाता है। मान्यता है कि माता सीता ने भगवान श्रीराम की प्राप्ति के लिए इसी देवी की आराधना की थी। ज्योतिष शास्त्र में इनका संबंध शुक्र ग्रह से माना गया है।
देवी उपासक करेंगे हवन व कन्या पूजन
ज्योतिषी झा के अनुसार कल रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र करने वाले श्रद्धालु माता सिद्धिदात्री की पूजा के बाद हवन, तर्पण, मार्जन, पुष्पांजलि एवं कन्या पूजन कर इसका समापन कर माता से कोरोना महामारी से जल्द मुक्ति के लिए प्रार्थना करेंगे। कल ही दुर्गा सप्तशती, रामचरित मानस आदि धर्म ग्रंथ के पाठ का समापन भी होगा। माता को खोंइछा देकर उनकी विदाई भी होगी। वहीं गुरूवार को विजयादशमी का त्योहार मना कर श्रद्धालु जयंती धारण करेंगे। कल रामनवमी के दिन ही ध्वजा पूजन कर नए ध्वज की स्थापना भी की जाएगी।
पूजन से मानसिक शांति व उन्नति
पंडित झा ने कहा कि बुधवार को चैत्र शुक्ल नवमी को राम नवमी के अति पुण्यदायक दिवस पर प्रभु श्रीराम व हनुमान आराधना से श्रद्धालुओं को शत्रु शमन, उच्च पद की प्राप्ति, मानसिक शांति, नेतृत्व क्षमता, मनोबल में वृद्धि, संबंधों में मधुरता तथा प्रगति के अवसरों की प्राप्ति के साथ समय की अनुकूलता प्राप्त होगी। इस पूरे दिन महानवमी या रामनवमी का त्योहार मनाया जाएगा। राम नवमी के दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की थी। दक्षिण संप्रदाय के लोग इस पर्व को कल्याणोत्सव यानि प्रभु श्रीराम की शादी समारोह के रूप में मनाते हैंंंंंं। उनकी मान्यता है कि इससे पति-पत्नी के बीच प्रेम प्रगाढ़ होते हैं।
सर्वसिद्धि की होगी प्राप्ति
ज्योतिषी झा ने देवी पुराण के हवाले से बताया कि सिद्धिदात्री माता की उपासना करने से सर्वसिद्धि की प्राप्त होती हैं। जगत जननी के नौ रूपों ये सबसे अंतिम देवी हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति होती है। भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन से माता के भक्तों को सांसारिक असारता का बोध तथा अमृत पद की प्राप्ति होती हैं।
पूजन, हवन व ध्वज स्थापना मुहूर्त
अमृत योग: प्रात: 06:59 बजे से 08:35 बजे तक
गुली काल मुहूर्त: सुबह 10:12 बजे से 11:48 बजे तक
नवमी तिथि: कल रात 07:06 बजे तक

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