बिहार में जारी रहेगी जातीय जनगणना : सुप्रीम कोर्ट ने दायर याचिका को किया खारिज, महागठबंधन सरकार को बड़ी राहत

पटना। जातीय गणना को लेकर नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार को आज सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। जातीय गणना पर रोक लगाने संबंधी याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। आज सुप्रीम कोर्ट में दायर तीन याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले में कोई सुनवाई नहीं करेगा। सरकार द्वारा की जा रही गणना को लेकर अगर किसी प्रकार की आपत्ति है तो याचिकाकर्ता को सबसे पहले पटना हाईकोर्ट में अपील दायर करनी होगी। पटना हाईकोर्ट में फैसले के बाद ही इस पर सुप्रीम कोर्ट में किसी प्रकार की सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले को कहा है कि वे पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर करें। सुप्रीम कोर्ट में आज जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच में इस याचिका पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस बात से नाराज थी कि याचिका दायर करने वालों ने हाईकोर्ट के बजाय सीधे सर्वोच्च न्यायालय मे अपील दायर दी है। कोर्ट ने कहा कि ये पब्लिसिटी के लिए दायर की गयी याचिका है। कोर्ट ने कहा कि वे इस याचिका की सुनवाई नहीं कर सकते। याचिका दायर करने वाले को हाईकोर्ट जाना चाहिये। बिहार में शुरू हुए जातिगत जनगणना के खिलाफ 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी। याचिका में कहा गया था कि बिहार सरकार न सिर्फ भारतीय संविधान का उल्लंघन कर जातिगत जनगणना करा रही है बल्कि जातीय दुर्भावना पैदा करने की भी कोशिश कर रही है। कोर्ट से बिहार के जातिगत जनगणना पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में ये जनहित याचिका बिहार के नालंदा के निवासी अखिलेश कुमार ने दायर किया था। याचिका में कहा गया था कि जनगणना कानून के तहत सिर्फ केंद्र सरकार ही देश में जनगणना करा सकती है। इसके लिए नियम बनाये गये हैं जिसके तहत जनगणना करायी जायेगी। राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार ही नहीं है।

ऐसे में बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का आदेश जारी कर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि सरकार किसी व्यक्ति की जाति औऱ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर सकती है। भारतीय संविधान की कई धाराओं में स्पष्ट तौर पर ये बातें कहीं गयी हैं। संविधान में ये भी कहा गया है कि किसी जाति को ध्यान में रख कर कोई नीति या पॉलिसी नहीं बनायी जा सकती है। कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि भारतीय संविधान में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के कार्यों का बंटवारा किया गया है। इसमें राज्यों के जिम्मे जनगणना कराने का अधिकार नहीं दिया गया है। भारतीय संविधान में जातिगत भेदभाव खत्म करने पर जोर दिया गया है।