BIHAR : साहित्यकारों व कथाकारों ने रखी बात, प्रवासी मजदूरों की मदद करें, उनके नाम पर राजनीति नहीं

भागलपुर (गौतम सुमन गर्जना)। अंग महाजनपद के चर्चित लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार व कथाकारों ने वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर देश-राज्य और विभिन्न जिलों में पैदा हुई स्थिति-परिस्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर एक-दूसरे से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आपस में बात की और कहा कि आज महामारी की विकट स्थिति में जो कुछ भी हो रहा है, वह कदाचित उचित नहीं है। देश के जाने माने चर्चित कथाकार शिव कुमार शिव ने कहा कि साहित्य केवल देश व समाज में फैले कुरितियों को नई दिशा देने का कार्य नहीं करता है, बल्कि वह हमें जीना भी सिखाता है। उन्होंने कहा कि यह बात सत्य है कि साहित्य को राजनीति से कोई मतलब या सरोकार नहीं है, लेकिन जब-जब देश में कोई विपदा या राजनीति में कोई कुरीतियां आई हैं, तब-तब साहित्यकारों ने ही उसे नई दिशा देकर संभालने और संवारने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि सही मायने में इस तरह की महामारी या कोई विपदा लोगों के सामने आए तो उसे टीवी व अखबार से दूर होकर, साहित्य के निकट चले जाना चाहिए। साहित्य पढ़ने और साहित्य लिखने से इस तरह की विपदा स्वत: दूर चली जाती है। उन्होंने देश की दशा-दुर्दशा पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि कोरोना महामारी से पीड़ित व भयभीत होकर लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बिहार लौटें हैं और अभी भी यह सिलसिला जारी है। उन्होंने कहा कि हम सबको उनकी चिंता करनी चाहिए और उनकी मदद के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए काम या प्रयास होने की बजाय उनके नाम पर बिहार में जो राजनीति शुरू हो गई है, वह उचित नहीं है। क्योंकि राजनीति करने का तो आगे भी समय बहुत मिलेगा, अभी तो हर तरह से उनकी मदद करने की जरूरत है।
हिंदी-अंगिका के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ.अमरेन्द्र ने इन प्रवासियों के लिए वैकल्पिक रोजगार और पुर्नवास के बारे में सरकार को सोचने की बात कर कहा कि इस दिशा में केंद्र व राज्य सरकार को आपस में तालमेल कर सकारात्मक पहल करनी चाहिए, जिससे प्रवासी मजदूर लाभान्वित हों। साहित्यकार अनिरुद्ध प्रसाद विमल ने प्रवासी मजदूरों की तकलीफें और उनके दयनीय हालात की असलियत जानकर उनके समाधान की दिशा में कार्य करने की बात कही। गीतकार राजकुमार ने कहा कि किसी भी सूरत में यह राजनीति करने का वक्त नहीं है, बल्कि स्थिति-परिस्थिति को समझने का समय है। वहीं गांधीवादी मनोज मीता ने मजदूरों के नाम पर राजनीति करने वालों से एक बात पूछा कि मजदूरों का पलायन तो यहां से 1990 में ही शुरू हो गया था और तभी जातीय विद्वेश फैलाये गये थे। तब सारे कल-कारखाने भी बंद करवा दिये गये थे और चरवाहा विद्यालय खोला गया था,तब तो आज जितने लोग प्रवासी मजदूरों के नाम पर राजनीति कर रहे है, वो उस समय सरकार के साथ ही थे न? उन्होंने ऐसे लोगों को इस तरह की राजनीति से परहेज करने की बात कही। कवि रथेन्द्र विष्णु नन्हें ने 1990 के समय के काले इतिहास को पुन: दोहराने की साजिश से लोगों को परहेज करने की नसीहत दी।
अंत में ये कथाकार व साहित्यकारों ने एक स्वर में नेताओं से अपील किया कि वे मजदूरों को लेकर राजनीति करना बंद करें और इन गरीब मजदूरों को रोजगार दिलाने में मदद करें और अगर ऐसा नहीं होगा तो आम जनता सब देख रही है, उन्हें जनता की अदालत कभी माफ नहीं करेगी।

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