गंभीर आरोप: बिहार कांग्रेस ने बेच दिए सारे टिकट, राष्ट्रीय प्रभारी तथा प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ विक्षुब्धों ने खोला बड़ा मोर्चा, पार्टी में बवाल
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीटों के बंटवारे तथा टिकट वितरण को लेकर बिहार प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं ने एक साथ पार्टी के राष्ट्रीय प्रभारी तथा प्रदेश अध्यक्ष को कटघरे में खड़ा कर दिया है। शनिवार को राजधानी पटना के एक होटल में आयोजित संवाददाता सम्मेलन के दौरान बिहार में कांग्रेस के द्वारा विधानसभा चुनाव में दिए जा रहे टिकटों को लेकर बड़ी ‘पोल खोल’ की गई। इस दौरान कई पूर्व विधायक तथा टिकट के मजबूत दावेदार उपस्थित थे। जिन्होंने सीधे-सीधे टिकट वितरण में भारी अनियमित का आरोप लगाया तथा इसकी किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच की मांग भी की। बिहार में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच कांग्रेस फिर अंदरूनी संकट से जूझती दिखाई दे रही है। अब तक दिए गए टिकटों के वितरण को लेकर घोर असंतोष सामने उभर कर आ रहा है।पार्टी के विक्षुब्ध नेताओं के द्वारा पार्टी के राष्ट्रीय प्रभारी कृष्णा अल्लावरू तथा प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पार्टी को प्राइवेट एजेंसियों के हाथ में बेचने के भी आरोप है। पटना में कांग्रेस रिसर्च सेल के अध्यक्ष आनंद माधव, पूर्व प्रत्याशी गजानंद शाही, छत्रपति तिवारी, नागेंद्र प्रसाद विकल, रंजन सिंह, बच्चू प्रसाद सिंह राजकुमार राजन और बंटी चौधरी समेत कई नेताओं ने बगावत का बिगुल फूंक दिया। इन नेताओं ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को खुली चेतावनी देते हुए कहा कि बिहार कांग्रेस अब “कुछ नेताओं के निजी दलालों” के हाथों में कैद हो गई है। आरोप है कि वर्षों तक पार्टी के लिए संघर्ष करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर ऐसे चेहरों को टिकट दिया जा रहा है, जो राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक हैं और जिनकी पहचान केवल धनबल तक सीमित है। यह सवाल सिर्फ टिकट पाने या न पाने का नहीं है, बल्कि उस मूलभूत सवाल से जुड़ा है कि कांग्रेस बिहार में अपने सांगठनिक ढांचे में विचारधारा और कर्मशीलता को कितना महत्व देती है? जब टिकट वितरण का आधार संगठन में सक्रियता के बजाय व्यक्तिगत समीकरण और आर्थिक हैसियत बन जाए तो कोई भी पार्टी अपनी वैचारिक धुरी खोने लगती है। असंतुष्ट नेताओं ने सीधे तौर पर राहुल गांधी पर तो उंगली नहीं उठाई, लेकिन उनका यह कहना कि “राहुल गांधी के भरोसे का दुरुपयोग हुआ है”, संकेत देता है कि प्रदेश नेतृत्व पर केंद्रीय नेतृत्व की पकड़ या निगरानी कमजोर रही है। यह कांग्रेस के लिए नई बात नहीं। कई राज्यों में देखा गया है कि राहुल गांधी का नाम लेकर आंतरिक गुटबाजी को या तो सही ठहराया जाता है या उसके पीछे छिपने की कोशिश की जाती है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या राहुल की टीम में वे लोग हैं जो जमीनी हकीकत से अवगत हैं? और अगर हैं तो क्या उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया जा रहा है? बिहार में कांग्रेस पहले ही राजनीतिक जमीन खोकर लालू यादव की गोद में बैठी हुई है। अगर टिकट बंटवारे में भी पारदर्शिता नहीं होगी तो पार्टी को फिर से जिंदा करने के प्रयासों को झटका लगना तय है। यह विवाद केवल कांग्रेस तक सीमित नहीं है। बिहार में कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है। ऐसे वक्त में जब सीट बंटवारे को लेकर ही घटक दलों के बीच भारी तकरार है तो कांग्रेस के भीतर उपजे असंतोष से गठबंधन की दरार और बढ़ सकती है। अगर नाराज नेता अंदरूनी मंचों की बजाय बाहर आकर बगावती तेवर दिखाते हैं तो यह सिर्फ विरोधियों को ही फायदा नहीं पहुंचाएगा, बल्कि कांग्रेस के अंदर संगठनात्मक विफलता को भी उजागर करेगा।


