मतदाता सूची पुननिरीक्षण के विरोध में इंडिया गठबंधन का बिहार बंद, कई जिलों में ट्रेन रोकी, राहुल गांधी पटना पहुंचे
पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई मतदाता सूची के पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर विपक्षी पार्टियों ने कड़ा विरोध जताया है। इसी क्रम में बुधवार को कांग्रेस, राजद, वाम दलों समेत इंडिया गठबंधन ने बिहार बंद का आह्वान किया। बंद के समर्थन में कई जिलों में प्रदर्शन हुए, सड़कों और रेल मार्गों को बाधित किया गया और जगह-जगह विरोध जताया गया।
रेल और सड़क यातायात प्रभावित
बिहार बंद के दौरान कई जिलों में ट्रेनें रोकी गईं। भोजपुर के बिहिया स्टेशन पर राजद के पूर्व विधायक भाई दिनेश ने समर्थकों के साथ श्रमजीवी और विभूति एक्सप्रेस को कुछ समय के लिए रोका। वहीं जहानाबाद में मेमू पैसेंजर को रोका गया और दरभंगा में नमो भारत ट्रेन के संचालन में बाधा पहुंचाई गई। बेगूसराय में एनएच-31 को जाम कर दिया गया जबकि पटना के मनेर और आरा में भी आगजनी के साथ मुख्य मार्गों को बाधित किया गया। पप्पू यादव ने सचिवालय हॉल्ट पर प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों से यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। कटिहार में महिलाओं को प्रदर्शनकारियों से हाथ जोड़कर रास्ता देने की विनती करते भी देखा गया।
राहुल गांधी की भागीदारी और विपक्षी दलों की आपत्ति
कांग्रेस नेता राहुल गांधी पटना पहुंचे और बंद में भाग लिया। इससे बंद को राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्व मिला। कांग्रेस ने इस पूरी प्रक्रिया को मतदान अधिकारों की डकैती बताते हुए आरोप लगाया कि यह एक अनौपचारिक एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स) की तरह है, जो गरीब और वंचित वर्ग को प्रभावित करेगा। विपक्ष का कहना है कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र और माता-पिता की जानकारी जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जो ग्रामीण और गरीब तबकों के पास सामान्यतः नहीं होते।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह पूरी प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत की जा रही है। आयोग के अनुसार, इससे किसी वैध वोटर का नाम सूची से नहीं कटेगा। इसका उद्देश्य फर्जी और विदेशी घुसपैठियों के नाम हटाना है। आयोग ने बताया कि करीब 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 4.96 करोड़ वे लोग हैं, जो 2003 की मतदाता सूची में भी शामिल थे। इन्हें सत्यापन से छूट दी गई है। शेष 2.93 करोड़ वोटरों का ही वेरिफिकेशन होना है। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों के डेढ़ लाख बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) लगाए गए हैं।
विवाद के मुख्य बिंदु और चुनौतियाँ
विपक्ष का तर्क है कि यह प्रक्रिया बिहार चुनाव के तुरंत पहले क्यों शुरू की गई, जब इसकी घोषणा जून के अंत में ही हुई। पहले 2003 में यह प्रक्रिया एक साल पहले की गई थी। साथ ही, बिहार में आगामी दिनों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे लोगों के लिए दस्तावेज जुटाना और वेरिफिकेशन कराना मुश्किल होगा। बड़ी संख्या में लोग बिहार से बाहर काम करते हैं, ऐसे में जब BLO उनके घर जाएगा तो वे मौजूद नहीं रहेंगे और उनका नाम हटाया जा सकता है। इससे अनुमान है कि करीब 20% वैध वोटर सूची से बाहर हो सकते हैं।
न्यायिक दखल और आगे की प्रक्रिया
इस मुद्दे पर गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। अदालत ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई तय की है। इससे यह स्पष्ट है कि यह मामला अब कानूनी और राजनीतिक दोनों ही मोर्चों पर गर्मा गया है। बिहार बंद और विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से विपक्ष ने जनता तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की है कि यह प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और असमान है, जबकि चुनाव आयोग पारदर्शिता और वैधता का दावा कर रहा है। अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और आयोग के आगे के कदमों पर टिकी है।


