BIHAR : कोरोना का डंक फूलों की खेती पर, अब हालात सिखा रहा है हूनर

लत्तीदार हरी सब्जी की खेती का गुर सीखाने में लगे हैं गिरीश


भागलपुर। फूलों की खेती कर लाखों की कमाई करने वाला बिहार के भागलपुर जिला के लोदीपुर पंचायत के जगतपुर गांव निवासी गिरीश कुमार के फसलों को कोरोला का डंक मार गया है। इस संक्रमण के कारण उत्पन्न लॉकडाउन की स्थिति में शादी-विवाह, धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों में पूरी तरह से ब्रेक लग गया है। सावन जैसे पावन मास में गिरीश फूलों की बिक्री कर फूला नहीं समाता था, लेकिन लॉकडाउन के कारण यह व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त और प्रभावित हो गई है, जिस कारणवश इन्हें लाखों रूपये का नुकसान उठाना पड़ा है। यूं कहें कि फूलों की फसल को लगी कोरोना के डंक ने न सिर्फ उसकी खुशबू उड़ा दी, बल्कि गिरीश को भी आर्थिक संकट में डाल दिया है।
अब हालात सिखाते हैं हूनर
कहते हैं हालात जब विपरीत होती है, तो एक दरवाजा बंद होते ही कई दरवाजे खुल जाते हैं। ऐसी स्थिति में बहुत कुछ सीखने का भी मौका मिलता है। बहरहाल, गिरिश ने भी इस संकट की घड़ी में बहुत कुछ सीख लिया है। उन्होंने सोचा कब तक कोरोना संकट और लॉकडाउन खुलने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे। जीना है तो कुछ अलग हट कर करना ही पड़ेगा। गिरिश के मन में एकाएक विचार आया कि अपने खेतों में लगे फूलों के उपर लत्तीदार सब्जी की खेती किया जा सकता है। फिर क्या था, बिना देर किए उसने परोल, करेला, कद्दू और झींगा की खेती शुरू कर दी। अब वह सब्जी बेचकर घर-परिवार का भरण-पोषण करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हो रही है। परिवार चलाने भर कमा लेता है।
फूलों की खेती से महक उठी थी जिंदगी
फूलों की सफल खेती कर गिरिश की जिंदगी महक उठी थी। उन्होंने इस काम को चार वर्ष पूर्व शुरू किया था। लाख रुपये से अधिक सलाना कमा रहे थे। आसपास के किसानों को भी फूलों की खेती के लिए प्रेरित कर रहा था। उनकी इस प्रेरणा से दर्जन भर किसानों ने भी फूलों की खेती प्रारंभ कर दी थी। बहरहाल सबका कारोबार चौपट हो गया है। कुछ तो दिहाड़ी करने लगे हैं।
शहर के व्यापारियों में बना ली थी पहचान
गिरिश ने दो-तीन वर्षो में गेंदा एवं बेली फूल की खेती कर शहर के बाजार में फूल व्यवसायियों के बीच अपनी पहचान बना ली थी। भले पूर्व में उन्हें फूलों की बिक्री करना बड़ा मुश्किल काम लगता था। तब बाजार में व्यवसायी स्थानीय फूल लेना पसंद नहीं करते थे, लेकिन थोड़े ही दिनों में उसने अपनी मेहनत के बल पर पहचान बना ली थी। वे मुख्य रूप से सर्दी के समय में गेंदा, गर्मी में गरमा गेंदा और बेली फूल की खेती करते थे।
पहले फूल अब सब्जी की घर पर आ रही डिमांड
गिरिश बताते हैं कि शादी विवाह, जन्मोत्सव व गृह पूजा में सजावट के लिए लोग बाजार के बजाय सीधे खेतों पर ताजे फूल के लिए आ जाते थे। आज परिस्थितियां बदली है तो हमारा व्यापार भी बदल गया है। जो लोग मुझे पूर्व से पहचानते हैं वे अब फूल के बदले हरी सब्जियां लेने सुबह-सबेरे मेरे घर पर आ जाते हैं। इतना ही नहीं पास-पड़ोस की सब्जी की बिक्री का जिम्मा भी खुद गिरीश ने उठा लिया है।
साथी किसानों को कर रहे जागरूक, सीखा रहे गुर
उनके जो साथी किसान फूलों की खेती कर रहे थे उन्हें भी गिरिश लत्तीदार हरी सब्जी की खेती का गुर सीखाने में लगे हैं। ताकि वे भी आर्थिक संकट को दूर कर सकें। उन्होंने कहा कि अब गांव में अजीत मंडल, पुतुल देवी, रामविलास मंडल एवं सुबोध मंडल सहित आधा दर्जन से अधिक किसान फूलों की खेती के साथ-साथ सब्जी की भी खेती कर रहे हैं साथ ही वह अपनी देखरेख में बगल के गांव तहबलपुर, लोदीपुर खुर्द, बसंतपुर, सरधो एवं धनकर के दर्जन भर किसानों पहले फूल और अब कोरोना काल में सब्जी खेती करवा रहे हैं।

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