प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम, सीएलपी डॉ शकील अहमद खान और डॉ मदन मोहन झा ने जारी किया संयुक्त बयान, कहा “मतदाता सूची का विशेष तीव्र पुनरीक्षण: प्रजातंत्र की पीठ पर गंभीर वार”

पटना। चुनाव आयोग ने बिहार में भाजपा सरकार के साथ मिलकर एक खतरनाक खेल भारत के प्रजातंत्र के साथ खेला है। याद कीजिए, आज़ादी के बाद से भारत का चुनाव आयोग एक मुहिम चलाता रहा है कि कैसे अधिक से अधिक मतदाताओं को जोड़ा जाए और अधिक से अधिक मतदान कराया जाए। मगर बिहार में भाजपा-जदयू की हार सामने खड़ी देख, चुनाव आयोग प्रजातंत्र की पीठ पर वार कर रहा है और बिहार में 20% अर्थात् लगभग 2 करोड़ लोगों के नाम मतदाता सूची से काटने की तैयारी कर रहा है। यह बात ख़ुद चुनाव आयोग ने इंडिया गठबंधन दल के प्रतिनिधिमंडल से कही है। ये बातें बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम, विधानसभा में विधायक दल के नेता डॉ शकील अहमद खान और विधान परिषद में दल के नेता डॉ मदन मोहन झा ने संयुक्त बयान जारी कर कही है।

एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने ज़मीनी सच्चाई का जो जायजा लिया है, उससे आपको अवगत कराते हैं — जो होश उड़ा देने वाला है।
बिहार में 28 जून से शुरू हुआ मतदाता सूची का विशेष तीव्र पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR), जो 30 सितंबर को मतदाता सूची के प्रकाशन के साथ समाप्त होने वाला है। लेकिन यह प्रक्रिया शुरुआत से ही भारी भ्रम और संदेह के घेरे में है।
चुनाव आयोग के धोखे की कहानी — बिहार के लोगों की जुबानी
सारण ज़िले के महमदा गांव के 65 वर्षीय चंद्रमोहन सिंह, जो बूथ संख्या 240 के मतदाता हैं, इस भ्रम के उदाहरण हैं। सोमवार को उन्हें यह फॉर्म दिया गया, लेकिन आज भी वह रिक्त पड़ा है। जब उनसे पूछा गया कि यह फॉर्म किसलिए है, तो उन्होंने कहा— “इसे इसलिए दिया गया है कि मैं ज़िंदा हूं या मर गया हूं, यह पता चल सके।”
श्री चंद्रमोहन सिंह के परिवार में कोई भी — जो सभी कुशवाहा समुदाय से हैं — उन फॉर्मों को पढ़ने में सक्षम नहीं है, जो केवल उन चार सदस्यों को दिए गए हैं जो 1987 से पहले पैदा हुए थे। उनकी पत्नी, रामदई देवी (58 वर्ष) कहती हैं, “मुझे नहीं पता यह क्या है। बीएलओ साहब ने कहा है कि इसे भरकर जल्द से जल्द जमा करना है। लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इसमें क्या भरूं। मैंने अपने बेटे से पूछा, लेकिन वह भी नहीं समझ पा रहा है।”
3. चंपारण के आस-पास के गांवों में रहने वाले ज़्यादातर मतदाताओं को इस बारे में जानकारी ही नहीं है कि इस साल के अंत में संभावित विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण हो रहा है। यह स्थिति तब है जबकि चुनाव आयोग (EC) ने स्पष्ट किया है कि:
2003 की मतदाता सूची में जिन 4.96 करोड़ मतदाताओं के नाम पहले से दर्ज हैं, उन्हें एक एनेमरेशन फॉर्म (enumeration form) भरकर उसमें मतदाता सूची की एक प्रति (extract) संलग्न करनी है।
बाकी के 2.93 करोड़ मतदाता, जिनके नाम 2004 के बाद जोड़े गए हैं या जो हाल ही में 18 वर्ष के हुए हैं, उन्हें जन्म प्रमाण और निवास प्रमाण के साथ यह फॉर्म भरना ज़रूरी है। अर्थात् फॉर्म सभी मतदाताओं को भरना है।
लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि गांवों में अधिकांश मतदाताओं को यह प्रक्रिया समझ में नहीं आ रही। बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) द्वारा फॉर्म तो बांटे जा रहे हैं, लेकिन अधिकांश ग्रामीण यह समझ नहीं पा रहे कि इसे कैसे भरना है।
यह पूरी स्थिति इस ओर इशारा करती है कि:
चुनाव आयोग द्वारा सूचना और जागरूकता फैलाने के प्रयास किए ही नहीं जा रहे हैं।
फॉर्म की भाषा और प्रक्रिया बहुत जटिल है, ख़ासकर ग्रामीण और बुज़ुर्ग मतदाताओं के लिए।
जिससे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और समावेशिता पर सवाल उठ रहे हैं।
गांव के एक और निवासी, योगेन्द्र बैथा, गर्व से अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और बैंक पासबुक दिखाते हैं। दुर्भाग्यवश, ये सभी दस्तावेज़ SIR प्रक्रिया के लिए मान्य नहीं हैं।
तो फिर ये लोग किस तरह के दस्तावेज़ मांग रहे हैं? अगर मैं जन्म प्रमाण पत्र या जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आवेदन करता हूँ ताकि यह साबित कर सकूँ कि मैं अनुसूचित जाति से हूँ, तो मुझे नहीं लगता कि ये दस्तावेज़ 26 जुलाई की अंतिम तारीख (SIR के लिए) से पहले मिल पाएंगे,” श्री बैथा कहते हैं, जो अपने अधूरे घर के बाहर खड़े हैं।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2003 की मतदाता सूची में शामिल न किए गए 2.93 करोड़ मतदाताओं में से, जो लोग 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे हैं, उन्हें अपने जन्म की तिथि और स्थान को प्रमाणित करने वाला दस्तावेज़ प्रस्तुत करना होगा।
जो लोग 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे हैं, उन्हें अपने साथ-साथ अपने माता या पिता में से किसी एक का ऐसा दस्तावेज़ देना होगा। वहीं, जो लोग 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे हैं, उन्हें अपने साथ-साथ अपने दोनों माता-पिता के ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।
स्वीकृत दस्तावेज़ों में जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाण पत्र, स्थायी निवास प्रमाण पत्र, वनाधिकार प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, राज्य और स्थानीय अधिकारियों द्वारा तैयार पारिवारिक रजिस्टर, सरकार द्वारा जारी भूमि या मकान आवंटन पत्र, सरकारी कर्मचारियों या पेंशनभोगियों को जारी दस्तावेज़, तथा 1967 से पहले विभिन्न सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा जारी किए गए अन्य दस्तावेज़ शामिल हैं।
आधार कार्ड सबसे आम पहचान पत्र है जो ग्रामीणों के पास होता है क्योंकि इसका उपयोग सभी सरकारी लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है, लेकिन यह चुनाव आयोग (ईसी) की सूची में शामिल नहीं है।
मीना देवी, 66 वर्ष, कहती हैं कि चुनाव आयोग द्वारा सूचीबद्ध दस्तावेज़ व्यावहारिक नहीं हैं। “अगर वे हमसे कोई दस्तावेज़ मांग रहे हैं, तो ब्लॉक ऑफिस में अलग से एक काउंटर खोलें जहाँ से हम वो दस्तावेज़ प्राप्त कर सकें,” वह कहती हैं। उदाहरण के लिए, जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सबसे पहले अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) के कार्यालय में आवेदन देना होता है, फिर अंचल अधिकारी (सीओ) द्वारा सत्यापन किया जाता है, उसके बाद ही दस्तावेज़ जारी किया जाता है।
शिव कुमारी देवी, 62 वर्ष, जो उसी बूथ की एक अन्य ग्रामीण हैं, को बताया गया कि यदि उन्होंने ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं दिए तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। “कोई मेरा नाम मतदाता सूची से कैसे हटा सकता है? मैंने 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट दिया था, तब मेरा नाम वैध था, अब कैसे अमान्य हो जाएगा?” उन्होंने सवाल किया।
दौलती कुमारी, उम्र 26 वर्ष, जिनकी शादी राकेश कुमार मांझी से हुई है, जो गरखा ब्लॉक के बूथ संख्या 239 के दलित टोला में रहते हैं, से उनके माता-पिता की जन्म तिथि और जन्म स्थान का दस्तावेज़ी प्रमाण मांगा गया है। दौलती कहती हैं, “शादी के बाद मैं ससुराल आ गई हूं और मेरे पास अपने माता-पिता से जुड़े कोई दस्तावेज़ नहीं हैं।”
कांति देवी, उम्र 47 वर्ष, जो धरमपुर गांव की रहने वाली हैं और मार्हौरा विधानसभा क्षेत्र के बूथ संख्या 271 की मतदाता हैं, कहती हैं कि वे हर चुनाव में बिना किसी समस्या के वोट डालती रही हैं। वे सवाल करती हैं, “अचानक क्या हो गया? हमें नहीं पता कि यह सर्वे क्यों हो रहा है। बीएलओ ने मेरा फॉर्म भरा और कुछ दस्तावेज़ मांगे। हम ये दस्तावेज़ कहां से लाएं? अगर मेरा नाम मतदाता सूची से हटाया गया, तो मैं ब्लॉक कार्यालय के सामने धरने पर बैठ जाऊंगी।”
हमारे हाथ बंधे हैं: बीएलओ
हर पोलिंग बूथ पर 1000 से अधिक वोटर होते हैं और महमदा पंचायत में कुल आठ पोलिंग बूथ हैं। इस प्रक्रिया के प्रमुख व्यक्ति, बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर), इस समय फैली भ्रम की स्थिति को स्वीकार करते हैं।
बूथ संख्या 240 के बीएलओ दिनेश कुमार कहते हैं कि एसआईआर (SIR) के बारे में जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है, जिसके लिए लाउडस्पीकर, टेलीविजन, रेडियो और विज्ञापन का सहारा लिया जाना चाहिए।
वे कहते हैं, “हम चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन कर रहे हैं लेकिन हमारे हाथ भी बंधे हैं। हर वोटर का फॉर्म भरना और व्यक्तिगत रूप से मदद करना संभव नहीं है।” दिनेश कुमार जोड़ते हैं कि वे सिर्फ मतदाताओं को आगे की प्रक्रिया में मार्गदर्शन दे सकते हैं।
एक अन्य बीएलओ, भूपेंद्र कुमार (बूथ संख्या 239) ने आशंका जताई कि यदि मतदाता आवश्यक दस्तावेज़ जमा नहीं कर पाए, तो कई लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए जा सकते हैं।
बूथ संख्या 271 के बीएलओ, उग्रिन महतो का कहना है कि वे तो सिर्फ चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन कर रहे हैं, लेकिन लोग उनसे तरह-तरह के सवाल पूछ रहे हैं। उदाहरण के लिए, कुछ मतदाताओं के माता-पिता का निधन हो चुका है, जिससे एसआईआर (SIR) प्रक्रिया में उन्हें सही मार्गदर्शन देने को लेकर बीएलओ असमंजस में हैं।