निर्जला एकादशी व्रत 2 जून को : समस्त एकादशियों के बराबर पुण्य प्रदान करती है ‘निर्जला एकादशी’

पटना। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी मंगलवार को चित्रा नक्षत्र व वरीयान योग में निर्जला एकादशी व्रत मनाया जाएगा। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी को निर्जल व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की पूजन व व्रत से समस्त पाप एवं तापों से श्रद्धालु को मुक्ति मिलती है। यह व्रत वर्ष की सबसे पुनीत एवं कठिन एकादशी है। इस दिन व्रत रखने से वर्षभर की एकादशी का पुण्य प्राप्त होता है। एकादशी तिथि के महत्व को बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-”मैं वृक्षों में पीपल एवं तिथियों में एकादशी हूं”। एकादशी की महिमा के विषय में शास्त्र सम्मत है कि विवेक के समान कोई बंधु नहीं और एकादशी के समान कोई व्रत नहीं। पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां और एक मन इन ग्यारहों को जो साध ले,वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। निर्जला एकादशी के इस महान व्रत को देवता, दानव, नाग, यक्ष,गन्धर्व,किन्नर,नवग्रह आदि अपनी रक्षा और जगत के पालनहार श्री हरि की कृपा प्राप्त करने के लिए एकादशी का व्रत करते हैं।
देवर्षि नारद जी ने किया निर्जल व्रत
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने पौराणिक मान्यता के आधार पर बताया कि पंचांगीय गणना के अनुसार पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशी व्रत होते हैं। इसमें सिर्फ निर्जल एकादशी व्रत को करने से पूरे वर्ष में किये गए एकादशी के समान पुण्य मिलता है। श्री श्वेतवाराह कल्प के आरंभ में देवर्षि नारद की विष्णु भक्ति देखकर ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। पुत्र नारद का नारायण प्रेम देखकर ब्रह्मा जी श्री विष्णु की प्रिय निर्जला एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। नारद जी ने प्रसन्नचित्त होकर एक हजार वर्ष तक निर्जल रहकर यह कठोर व्रत किया। हजार वर्ष तक निर्जल व्रत करने पर उन्हें चारों तरफ नारायण ही नारायण दिखाई देने लगे। परमेश्वर की इस माया से वे भ्रम में पड़ गए कि कहीं यही तो विष्णु लोक नहीं। तभी उनको भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुए। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति का वरदान देते हुए अपने श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया और तभी से निर्जल व्रत की शुरूआत हुई।
जीवन-मरण के बंधन से मिलती है मुक्ति
निर्जला एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है, इसलिए आज के दिन निर्जल व्रत, जप, तप, दान-पुण्य करने से प्राणी श्री हरि का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एकादशी का व्रत करने मात्र से जातक को ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों का शमन हो जाता है। इस व्रत में मन, कर्म, वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कृत से वंचित हो जाता है। इस व्रत के प्रभाव के व्रती को चारों पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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व्रत से कोटि गौ दान का पुण्य
ज्योतिषी झा के अनुसार इस दिन पीतांबरधारी भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करने से निरोग्यता, ऐश्वर्य, सांसारिक सुख व परमलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन गोदान, वस्त्रदान, छत्र, जूता, फल, सत्तू, सुपारी, जनेऊ, जलघट, पंखा आदि का दान करना बहुत ही पुण्यदायक होता है। इसके अलावे इन सामग्रियों के दान करने से स्वर्ण दान का फल मिलता है। इस व्रत व दान आदि से श्रद्धालुओं को करोड़ों गौ दान के समान फल प्राप्त होता है।

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