October 28, 2025

भागीरथ मांझी का कांग्रेस पर हमला, कहा- चार दिन दिल्ली में रहा, सब कागज जमा किए, फिर भी टिकट नहीं मिला

नई दिल्ली/पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच कांग्रेस पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष की आवाजें तेज हो गई हैं। इन्हीं में सबसे चर्चित नाम है ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी का। उन्होंने खुलकर कांग्रेस नेतृत्व पर नाराजगी जाहिर की है। राहुल गांधी से मुलाकात और आश्वासन के बावजूद जब उन्हें टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ईमानदार कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय किया है।
टिकट न मिलने से भागीरथ मांझी की नाराजगी
भागीरथ मांझी ने बताया कि उन्होंने टिकट के लिए कांग्रेस आलाकमान से संपर्क किया था। इसके लिए वे चार दिनों तक दिल्ली में पार्टी कार्यालय में रहे और सभी जरूरी दस्तावेज जमा किए। इतना ही नहीं, उन्होंने कई वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात की। उनका कहना है कि राहुल गांधी से उन्हें सकारात्मक संकेत मिला था और उन्होंने स्वयं आश्वासन दिया था कि टिकट मिलेगा। लेकिन जब पार्टी की सूची आई, तो उसमें उनका नाम न देखकर वे आहत हो गए। उन्होंने कहा, “मैं दिल्ली में चार दिन रहा, सारे कागजात जमा किए, राहुल गांधी से मुलाकात भी हुई। उन्होंने वादा किया था कि टिकट मिलेगा, लेकिन पार्टी ने मुझे मौका नहीं दिया।”
दशरथ मांझी की विरासत और भागीरथ का संघर्ष
दशरथ मांझी की कहानी सिर्फ पहाड़ काटने की नहीं, बल्कि संघर्ष, आत्मविश्वास और जिद की मिसाल थी। उन्होंने अकेले दम पर वर्षों की मेहनत से पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था। भागीरथ मांझी उसी जिद और संघर्ष को राजनीति के माध्यम से आगे बढ़ाना चाहते थे। वे अपने पिता की विचारधारा को सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में ले जाना चाहते थे। कांग्रेस से उनका जुड़ाव इसलिए भी खास था क्योंकि राहुल गांधी ने स्वयं दशरथ मांझी के काम की सराहना की थी और उन्हें “भारत का सच्चा हीरो” कहा था।
राहुल गांधी से पुराना संबंध और उम्मीदें
भागीरथ मांझी ने बताया कि उनका और राहुल गांधी का संबंध नया नहीं है। वे याद करते हैं कि राहुल गांधी खुद उनके घर गए थे और उनके साथ भोजन भी किया था। राहुल ने उस दौरान कहा था कि दशरथ मांझी की सोच और उनका कार्य देश के लिए प्रेरणा हैं। भागीरथ ने कहा, “राहुल गांधी ने वादा किया था कि जब मैं राजनीति में आऊंगा, तो पार्टी मुझे टिकट देगी। उन्होंने मेरे घर का निर्माण करवाया और एक कार्यक्रम में घर की चाबी भी सौंपी थी।” भागीरथ का कहना है कि वे कांग्रेस से इसलिए जुड़े थे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यह पार्टी आम लोगों की आवाज उठाने वाली है। लेकिन इस बार टिकट वितरण में उन्हें जो अनुभव हुआ, उसने उनके विश्वास को झटका दिया।
टिकट वितरण पर सवाल
भागीरथ मांझी ने कांग्रेस नेतृत्व पर आरोप लगाया कि पार्टी ने टिकट वितरण में पारदर्शिता नहीं बरती। उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने टिकट बांटने में कुछ नेताओं को साधने की कोशिश की और ईमानदार कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया। कुछ लोगों को खुश करने के लिए मुझे बाहर कर दिया गया।” उनके इस बयान के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या कांग्रेस में टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में जमीनी समीकरणों की अनदेखी हुई है? क्या पार्टी नेतृत्व ने स्थानीय नेताओं के बजाय ऊपरी स्तर के समीकरणों को तरजीह दी? राजनीतिक हलकों में यह सवाल तेजी से उभर रहा है।
कांग्रेस की समावेशी छवि पर उठे सवाल
भागीरथ मांझी का नाम न केवल दशरथ मांझी की विरासत से जुड़ा है, बल्कि समाज के उस वर्ग से भी है, जो वर्षों से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा रहा है। कांग्रेस हमेशा से समावेशी राजनीति की बात करती रही है। ऐसे में दशरथ मांझी के पुत्र को टिकट न देना पार्टी की विचारधारा पर सवाल खड़ा करता है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अगर ऐसे प्रतीकात्मक और संघर्षशील चेहरों को टिकट देने से चूक रही है, तो वह अपनी जमीनी पकड़ कमजोर कर रही है। बिहार जैसे राज्य में, जहां सामाजिक पहचान और संघर्ष की कहानियां राजनीति को दिशा देती हैं, वहां दशरथ मांझी के पुत्र को नज़रअंदाज करना एक बड़ी रणनीतिक भूल मानी जा रही है।
आगे की रणनीति पर रहस्य बरकरार
भागीरथ मांझी ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि वे आगे क्या कदम उठाएंगे। क्या वे किसी अन्य दल से चुनाव लड़ेंगे या राजनीति से दूर रहेंगे — इस पर उन्होंने कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया। हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा कि “मैंने जो वादा अपने पिता की आत्मा से किया था, उसे निभाऊंगा। राजनीति मेरे लिए सम्मान की लड़ाई है, टिकट न मिलना इसका अंत नहीं।” उनका यह बयान इस ओर संकेत करता है कि वे राजनीति से पीछे हटने वाले नहीं हैं। संभव है कि वे किसी अन्य पार्टी से चुनावी मैदान में उतरें या स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक यात्रा जारी रखें।
दशरथ मांझी की विरासत और जनता की भावनाएं
गया और आसपास के इलाकों में दशरथ मांझी आज भी प्रेरणा का प्रतीक हैं। उनका जीवन संघर्ष और समर्पण का उदाहरण है। ऐसे में उनके बेटे को टिकट न मिलना जनता के एक वर्ग में असंतोष का कारण बन गया है। स्थानीय लोग मानते हैं कि अगर भागीरथ को मौका दिया जाता, तो वे अपने पिता की तरह समाज के वंचित वर्गों के लिए काम कर सकते थे। भागीरथ मांझी का यह प्रकरण न केवल कांग्रेस की टिकट नीति पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि राजनीति में प्रतीकात्मक सम्मान और वास्तविक अवसर के बीच बड़ा अंतर है। दशरथ मांझी की विरासत संघर्ष की मिसाल थी, और उनके पुत्र उसी रास्ते पर चलने का सपना देख रहे थे। लेकिन कांग्रेस से टिकट न मिलने ने उस उम्मीद को झटका दिया है। अब देखना होगा कि भागीरथ मांझी आगे क्या रास्ता चुनते हैं — क्या वे अपने पिता की तरह नई राह बनाते हैं या मौजूदा राजनीतिक सिस्टम के भीतर रहकर संघर्ष जारी रखते हैं।

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