चुनावी विज्ञापन को लेकर निर्वाचन आयोग की गाइडलाइन जारी, कई नियमों का पालन अनिवार्य, उल्लंघन पर कार्रवाई
पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां अपने अंतिम दौर में पहुंच चुकी हैं। राज्य में दो चरणों में मतदान होना तय है — पहले चरण में 6 नवंबर को और दूसरे चरण में 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। इस बीच भारत निर्वाचन आयोग ने निष्पक्ष, पारदर्शी और शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराने के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। आयोग ने चुनावी विज्ञापनों के प्रकाशन और प्रसारण को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें कई सख्त निर्देश दिए गए हैं।
चुनाव आयोग का उद्देश्य
चुनाव आयोग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रचार अभियान के दौरान किसी भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार द्वारा मतदाताओं को भ्रमित करने या पक्षपातपूर्ण प्रचार से दूर रखा जा सके। आयोग चाहता है कि चुनावी प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से पूरी हो, जिसमें मतदाता बिना किसी दबाव या प्रभाव के अपना निर्णय ले सकें। आयोग द्वारा जारी गाइडलाइंस का सीधा मकसद मीडिया, विशेषकर प्रिंट मीडिया में प्रचार की पारदर्शिता बनाए रखना और आचार संहिता के उल्लंघन को रोकना है।
मतदान के दिन और उससे पूर्व विज्ञापन पर रोक
भारत निर्वाचन आयोग की ओर से जारी आदेश के अनुसार, मतदान के दिन और उससे पहले वाले दिन किसी भी प्रकार का राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित या प्रसारित नहीं किया जा सकेगा। इसका अर्थ यह है कि पहले चरण के चुनाव के लिए 5 और 6 नवंबर तथा दूसरे चरण के लिए 10 और 11 नवंबर को कोई भी विज्ञापन प्रिंट मीडिया में प्रकाशित नहीं किया जाएगा। यदि कोई राजनीतिक दल, उम्मीदवार, संगठन या व्यक्ति इन तिथियों पर विज्ञापन प्रकाशित करना चाहता है, तो उसे पहले मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति (एमसीएमसी) से अनुमति लेनी होगी। बिना पूर्व-प्रमाणन के विज्ञापन जारी करना सीधे उल्लंघन की श्रेणी में आएगा।
एमसीएमसी से पूर्व-प्रमाणन की आवश्यकता
भारत निर्वाचन आयोग ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि चुनाव प्रचार के तहत इस्तेमाल किए जाने वाले सभी विज्ञापनों को पहले राज्य या जिला स्तर पर गठित एमसीएमसी के समक्ष पेश करना अनिवार्य होगा। विज्ञापन के प्रकाशन की प्रस्तावित तिथि से कम से कम दो दिन पहले आवेदन जमा करना होगा। ताकि समिति के पास विज्ञापन सामग्री की समीक्षा करने और आवश्यक निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध हो। समिति विज्ञापन की सामग्री की जांच करेगी कि क्या उसमें किसी प्रकार की भ्रामक, उत्तेजक या मतदाताओं को प्रभावित करने वाली बातें नहीं हैं।
दो चरणों के लिए प्रतिबंधित तिथियां
आयोग द्वारा तय समय-सारणी के अनुसार — पहले चरण के लिए 5 नवंबर और 6 नवंबर तक कोई भी अराजनीतिक विज्ञापन ही प्रकाशित किया जा सकता है। दूसरे चरण के लिए 10 नवंबर और 11 नवंबर को भी राजनीतिक विज्ञापन पर पूरी तरह रोक रहेगी। ये तिथियां इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन दिनों मतदाता मतदान के लिए निर्णायक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए आयोग ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि कोई भी प्रचार सामग्री आखिरी समय पर लोगों की राय न बदल सके।
एमसीएमसी की जिम्मेदारी और कार्यप्रणाली
निर्वाचन आयोग ने राज्य और जिला स्तर पर मीडिया प्रमाणन और निगरानी समितियों (एमसीएमसी) को सक्रिय कर दिया है। इन समितियों की जिम्मेदारी होगी कि वे सभी राजनीतिक विज्ञापनों की सामग्री को समीक्षा कर उनके प्रमाणन पर शीघ्र निर्णय लें। एमसीएमसी यह भी सुनिश्चित करेगी कि किसी विज्ञापन में धार्मिक, जातिगत या साम्प्रदायिक भावना को भड़काने वाली भाषा का प्रयोग न हो और न ही कोई ऐसी अभिव्यक्ति हो, जिससे विरोधी उम्मीदवारों की छवि खराब की जा सके। समिति के निर्णय के बाद ही संबंधित राजनीतिक दल या उम्मीदवार अपनी विज्ञापन सामग्री को प्रसारित या प्रकाशित कर सकेंगे।
उल्लंघन की स्थिति में कार्रवाई
चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई दल या व्यक्ति बिना पूर्व अनुमति के विज्ञापन प्रकाशित करता है, तो इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसे मामलों में दोषी उम्मीदवार या दल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें चेतावनी, प्रचार रोकने का आदेश या गंभीर मामलों में प्रत्याशी की उम्मीदवारी तक रद्द करने का प्रावधान है। यह भी कहा गया है कि मीडिया संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे बिना प्रमाणन वाले किसी भी राजनीतिक विज्ञापन को प्रकाशित न करें। अगर कोई मीडिया संस्थान इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ भी आयोग कार्रवाई कर सकता है।
निष्पक्ष चुनाव की दिशा में पहल
भारत निर्वाचन आयोग लगातार प्रयास कर रहा है कि चुनावी प्रक्रिया हर स्तर पर निष्पक्ष रहे। आधुनिक समय में मीडिया की भूमिका निर्णायक बन गई है, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल से मतदाताओं के विचार प्रभावित हो सकते हैं। यही वजह है कि आयोग ने इस बार के चुनाव में मीडिया अभियान पर कड़ी निगरानी रखने का फैसला किया है। इन निर्देशों से आयोग का संदेश स्पष्ट है — चुनाव प्रचार की स्वतंत्रता हो, लेकिन उसकी सीमाएं तय रहें। किसी को भी झूठे प्रचार या भावनात्मक अपीलों से मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करने की छूट नहीं दी जाएगी। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी यह गाइडलाइन चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है। इससे न केवल वोटिंग के दौरान शांतिपूर्ण माहौल बनेगा, बल्कि मतदाताओं को वास्तविक मुद्दों के आधार पर निर्णय लेने में भी मदद मिलेगी। आयोग ने यह भी सुनिश्चित किया है कि एमसीएमसी त्वरित रूप से कार्य करे ताकि सही विज्ञापन समय पर स्वीकृत हो सकें और उम्मीदवारों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इस पहल से आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की विश्वसनीयता और निष्पक्षता दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।


