नालंदा में निजी क्लीनिक में 2 माह की बच्ची की मौत, परिजनों ने की तोड़फोड़, इलाज में लापरवाही का आरोप
नालंदा। जिले में बुधवार को एक निजी क्लीनिक में उस समय हड़कंप मच गया जब इलाज के दौरान दो माह की बच्ची की मौत हो गई। घटना के बाद परिजनों और स्थानीय लोगों ने क्लीनिक में जमकर हंगामा किया, तोड़फोड़ की और कर्मचारियों के साथ मारपीट भी की। मामला नालंदा जिले के बिहार थाना क्षेत्र के रांची रोड अस्पताल चौक स्थित एक निजी क्लीनिक का है। मृतका की पहचान गिरियक थाना क्षेत्र के असगर उद्दीन की पुत्री अनाबिया के रूप में हुई है। इस घटना ने एक बार फिर निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली और उनकी जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इलाज के दौरान बच्ची की मौत, परिजनों का आरोप
परिजनों के अनुसार, बच्ची को 13 अक्टूबर को निमोनिया की शिकायत पर उक्त क्लीनिक में भर्ती कराया गया था। उन्होंने बताया कि बच्ची की हालत में सुधार होने के बजाय लगातार गिरावट आती गई। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों और स्टाफ ने समय पर उचित इलाज नहीं किया और लापरवाही बरती। उन्होंने यह भी कहा कि क्लीनिक ने इलाज के नाम पर 50,000 रुपये की भारी राशि ली, लेकिन गंभीर स्थिति में भी आवश्यक कदम नहीं उठाए। परिजनों का यह भी कहना है कि जब बच्ची की हालत अत्यधिक बिगड़ गई, तब डॉक्टरों ने जानबूझकर देर से उसे रेफर किया, जिससे उसकी जान नहीं बच पाई। इस आरोप ने परिजनों के आक्रोश को और बढ़ा दिया, जिसके बाद उन्होंने क्लीनिक में तोड़फोड़ की और डॉक्टरों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
क्लीनिक संचालक का पक्ष
वहीं दूसरी ओर, क्लीनिक के संचालक डॉ. जमील अख्तर ने परिजनों के सभी आरोपों को निराधार बताया है। उन्होंने कहा कि बच्ची को जब भर्ती कराया गया था, तब ही उसकी हालत बेहद गंभीर थी। डॉक्टर के अनुसार, उन्होंने शुरुआत से ही परिजनों को बेहतर इलाज के लिए हायर सेंटर (बड़े अस्पताल) ले जाने की सलाह दी थी, लेकिन परिवार यहीं इलाज कराने पर अड़ा रहा। डॉ. अख्तर ने कहा कि जब मंगलवार की शाम बच्ची की हालत और बिगड़ गई, तो उसे रेफर कर दिया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि क्लीनिक ने अपनी पूरी क्षमता के अनुसार इलाज किया, लेकिन हालत बहुत खराब होने के कारण बचाना संभव नहीं हो सका। डॉक्टर के इस बयान से स्पष्ट होता है कि दोनों पक्षों के बीच घटनाक्रम को लेकर मतभेद बना हुआ है।
तोड़फोड़ और हिंसक घटनाक्रम
बच्ची की मौत की खबर फैलते ही बड़ी संख्या में स्थानीय लोग क्लीनिक के बाहर जुट गए। देखते ही देखते भीड़ आक्रोशित हो उठी और क्लीनिक में जमकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। गुस्साए लोगों ने क्लीनिक के शीशे, फर्नीचर और कई उपकरण क्षतिग्रस्त कर दिए। इस दौरान कर्मचारियों में अफरातफरी मच गई और कुछ स्टाफ सदस्यों के साथ मारपीट की भी सूचना है। स्थिति बेकाबू होती देख क्लीनिक प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। पुलिस टीम मौके पर पहुंची और काफी मशक्कत के बाद स्थिति पर काबू पाया। घटना के बाद से क्लीनिक के बाहर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है और पुलिस बल की तैनाती जारी है।
पुलिस जांच और आगे की कार्रवाई
बिहार थाना पुलिस ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार, दोनों पक्षों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं। साथ ही बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि तोड़फोड़ और हिंसा की घटनाओं में शामिल लोगों की पहचान की जा रही है और उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर जांच में क्लीनिक की ओर से लापरवाही साबित होती है तो डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ भी मामला दर्ज किया जाएगा।
निजी क्लीनिकों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
इस घटना ने एक बार फिर निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अक्सर देखने में आता है कि कई निजी क्लीनिकों में बिना पर्याप्त उपकरण और विशेषज्ञ डॉक्टरों के गंभीर मरीजों का इलाज किया जाता है। ऐसे में मरीजों की जान को जोखिम में डाल दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य व्यवस्था में पारदर्शिता और निगरानी की कमी के कारण इस तरह की घटनाएं बार-बार सामने आती हैं। इलाज के नाम पर बड़ी रकम वसूली जाती है, लेकिन मरीजों को अपेक्षित सुविधाएं नहीं मिलतीं। नालंदा की यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर प्रश्नचिह्न लगाती है। दो माह की मासूम की मौत ने यह दिखा दिया है कि निजी चिकित्सा संस्थानों में जवाबदेही और पारदर्शिता की कितनी कमी है। एक ओर डॉक्टर अपने बचाव में चिकित्सा सीमाओं का हवाला दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर परिजन अपनी बच्ची की मौत के लिए लापरवाही को जिम्मेदार मान रहे हैं। अब यह देखना होगा कि पुलिस जांच के बाद सच्चाई क्या सामने आती है। परंतु यह स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त निगरानी, जवाबदेही और स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।


