October 29, 2025

एनडीए में खींचतान के बीच चिराग ने चार लोगों को दिया टिकट, हुलास पांडे और राजू तिवारी लड़ेंगे चुनाव

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीट शेयरिंग भले ही पूरी हो गई हो, लेकिन अंदरूनी असंतोष और खींचतान कम होने का नाम नहीं ले रही है। खासकर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच मतभेद और स्पष्ट हो गए हैं। इसी बीच, चिराग पासवान ने अपने चार उम्मीदवारों को पार्टी का सिंबल दे दिया, जिससे एनडीए में हलचल और बढ़ गई है।
चिराग पासवान ने चार प्रत्याशियों को दिया टिकट
चिराग पासवान ने ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से हुलास पांडे, गोविंदगंज से राजू तिवारी, गरखा से सीमांत मृणाल और बखरी से संजय पासवान को पार्टी का सिंबल दिया है। सीमांत मृणाल, जिन्हें प्रिंस भी कहा जाता है, चिराग पासवान के भांजे हैं। इन नामों की घोषणा के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि लोजपा (रामविलास) ने अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है, चाहे गठबंधन में सहमति बनी हो या नहीं।
सीट शेयरिंग के बावजूद विवाद
एनडीए में सीटों का बंटवारा औपचारिक रूप से हो चुका है, लेकिन इस बंटवारे के बाद से ही कई दलों के बीच असहमति सामने आने लगी है। जदयू, भाजपा, लोजपा (रामविलास) और उपेंद्र कुशवाहा की रालोजपा (आरएलएसपी) के बीच समन्वय की कमी खुलकर दिख रही है। कई सीटों पर अभी भी यह अस्पष्ट है कि किस दल के उम्मीदवार को अंततः चुनाव लड़ने का अधिकार मिलेगा।
उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी
एनडीए में सबसे ज्यादा नाराजगी इस समय उपेंद्र कुशवाहा की ओर से दिखाई दे रही है। कुशवाहा ने मीडिया से बातचीत में साफ कहा कि “इस समय एनडीए में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।” उन्होंने महुआ विधानसभा सीट को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। पहले यह सीट उनके हिस्से में दी जानी थी, लेकिन अब चर्चा है कि महुआ सीट लोजपा (रामविलास) के खाते में जा सकती है। इस निर्णय से असंतुष्ट होकर कुशवाहा ने अपने सभी उम्मीदवारों को तब तक नामांकन न करने का निर्देश दिया है, जब तक कि दिल्ली में अमित शाह के साथ होने वाली बैठक में स्थिति स्पष्ट न हो जाए।
सोनबरसा सीट पर भी विवाद
महुआ के अलावा सोनबरसा विधानसभा सीट को लेकर भी एनडीए में तनाव देखने को मिला है। पहले यह सीट लोजपा (रामविलास) के खाते में बताई जा रही थी, लेकिन जनता दल (यूनाइटेड) ने इस पर दावा बरकरार रखा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को खुद जदयू विधायक और मंत्री रत्नेश सदा को दोबारा टिकट देकर यह संकेत दे दिया कि पार्टी अपने निर्णयों पर कायम है और किसी दबाव में नहीं झुकेगी। इस फैसले से लोजपा (रामविलास) का असंतोष और बढ़ गया है।
नीतीश कुमार की नाराजगी
सूत्रों के अनुसार, नीतीश कुमार एनडीए के भीतर चल रही इन गतिविधियों से नाखुश हैं। विशेष रूप से राजगीर सीट को चिराग पासवान की पार्टी के खाते में दिए जाने से उन्होंने असहमति जताई है। जदयू का मानना है कि राजगीर जैसी पारंपरिक सीटें उनके नियंत्रण में रहनी चाहिए थीं, लेकिन गठबंधन की राजनीति के चलते पार्टी को समझौता करना पड़ा।
अमित शाह की हस्तक्षेप की संभावना
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उपेंद्र कुशवाहा को दिल्ली बुलाया है ताकि उनकी नाराजगी दूर की जा सके। शाह चाहते हैं कि चुनाव से पहले गठबंधन की एकजुटता बनी रहे और किसी भी तरह का असंतोष सार्वजनिक रूप से न दिखे। क्योंकि अगर मतभेद खुले रूप में सामने आते हैं, तो इसका असर सीधे तौर पर चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।
चिराग पासवान की रणनीति
चिराग पासवान अपनी पार्टी को एनडीए के भीतर एक मजबूत ताकत के रूप में स्थापित करने में जुटे हैं। वह लगातार ऐसी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रहे हैं, जहां उनका मानना है कि लोजपा (रामविलास) की पकड़ मजबूत है। उनके भांजे सीमांत मृणाल को टिकट देकर उन्होंने पारिवारिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर एक संकेत दिया है कि पार्टी अब आत्मनिर्भर होकर निर्णय ले रही है।
एनडीए में बढ़ता अविश्वास
सीट बंटवारे और टिकट वितरण के बाद एनडीए में आपसी अविश्वास बढ़ गया है। जदयू और लोजपा (रामविलास) के बीच पुराना तनाव एक बार फिर उभर आया है, वहीं कुशवाहा की नाराजगी ने भाजपा के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। भाजपा नेतृत्व के सामने अब यह चुनौती है कि वह सभी दलों को साथ रखकर चुनावी अभियान को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाए। बिहार की सियासत में एनडीए की यह खींचतान चुनावी समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकती है। चिराग पासवान का टिकट वितरण एक राजनीतिक संदेश है कि उनकी पार्टी अपने निर्णय खुद लेने में सक्षम है। वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी और नीतीश कुमार की असहमति इस बात की ओर इशारा करती है कि गठबंधन में एकता बनाए रखना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। आने वाले दिनों में अमित शाह की पहल इस संकट को सुलझाने में कितनी कारगर साबित होती है, यह देखना दिलचस्प होगा। अभी के हालात में इतना तय है कि एनडीए के भीतर मतभेद चुनावी माहौल को और जटिल बना सकते हैं।

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