सीजेआई पर जूता फेंकने वाले वकील पर बड़ी कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश पर रोक, सदस्यता रद्द
नई दिल्ली। दिल्ली से आई एक गंभीर खबर ने न्यायपालिका और कानूनी जगत दोनों को हिला दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है। इस घटना को न्यायिक गरिमा के खिलाफ मानते हुए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने उनकी अस्थायी सदस्यता समाप्त कर दी है और शीर्ष अदालत परिसर में उनके प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है।
घटना और प्रारंभिक कार्रवाई
घटना कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट परिसर में हुई, जब वकील राकेश किशोर ने सीजेआई बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि जूता सीजेआई तक नहीं पहुंचा और सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया। इस घटना ने पूरे देश में हैरानी और आक्रोश पैदा कर दिया, क्योंकि यह सीधे तौर पर न्यायपालिका की गरिमा पर हमला माना गया। घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने किशोर से सुप्रीम कोर्ट परिसर में ही पूछताछ की थी। बाद में मुख्य न्यायाधीश गवई के निर्देश पर उन्हें छोड़ दिया गया। हालांकि, यह मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। अदालत और एसोसिएशन दोनों ने उनके आचरण को अनुशासनहीन और अस्वीकार्य माना।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की सख्त कार्रवाई
एससीबीए ने इस मामले पर तुरंत संज्ञान लेते हुए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव में कहा गया कि “एडवोकेट राकेश किशोर की अस्थायी सदस्यता क्रमांक के-01029/आरईएस, दिनांक 27 जुलाई 2011, तत्काल प्रभाव से समाप्त की जाती है।” साथ ही, उनका नाम एसोसिएशन की सदस्यता सूची से हटाने का निर्णय लिया गया। एसोसिएशन ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि उनके नाम पर कोई सदस्यता कार्ड जारी किया गया है, तो उसे रद्द किया जाएगा और जब्त भी किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को भी इसकी सूचना दी गई है, ताकि उनके एक्सेस कार्ड को तुरंत निरस्त किया जा सके।
आपराधिक कार्रवाई और एफआईआर दर्ज
वकील राकेश किशोर के खिलाफ बेंगलुरु में भी एफआईआर दर्ज की गई है। अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष भक्तवचला की शिकायत पर यह मामला दर्ज हुआ। बेंगलुरु पुलिस ने किशोर के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 132 और 133 के तहत मामला दर्ज किया है। धारा 132 के तहत किसी लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग दंडनीय अपराध है। वहीं, धारा 133 के तहत किसी व्यक्ति का अपमान करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग भी दंडनीय माना गया है। इन धाराओं के तहत दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण से गंभीर मामला
न्यायपालिका देश के लोकतांत्रिक ढांचे की सबसे मजबूत नींव मानी जाती है। ऐसे में किसी वकील द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर हमला करने की कोशिश केवल अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि न्यायिक व्यवस्था की प्रतिष्ठा पर चोट है। वकील समाज में कानून और न्याय के प्रतिनिधि होते हैं, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे कानून का पालन करें और अदालत की मर्यादा बनाए रखें। ऐसे में इस तरह का व्यवहार पेशे की गरिमा को धूमिल करता है।
आपराधिक अवमानना की कार्यवाही पर विचार
घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर भी विचार किया गया कि क्या राकेश किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए। एटॉर्नी जनरल को इस संबंध में कानूनी राय देने के लिए पत्र भेजा गया था। हालांकि, फिलहाल इस पर कोई औपचारिक कार्यवाही शुरू नहीं हुई है, लेकिन यह संभावना बनी हुई है कि उनके खिलाफ आगे भी कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट परिसर में घटी यह घटना न्यायिक मर्यादा के इतिहास में एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो गई है। इस पर की गई त्वरित कार्रवाई से यह स्पष्ट संदेश गया है कि अदालत की गरिमा और अनुशासन के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। एससीबीए और सुप्रीम कोर्ट प्रशासन दोनों ने यह सुनिश्चित किया है कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या वकील अदालत की प्रतिष्ठा को ठेस न पहुंचा सके। वकील राकेश किशोर के खिलाफ हुई यह कार्रवाई केवल एक व्यक्ति विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरे वकालत समुदाय के लिए एक चेतावनी है कि अदालत की गरिमा सर्वोपरि है और उसका उल्लंघन किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं होगा।


