बिहार में लड़कियों से ज्यादा लड़के छोड़ रहे स्कूल, राष्ट्रीय रिपोर्ट में खुलासा, अभिभावकों में शिक्षा और जागरूकता का अभाव

पटना। शिक्षा को समाज की प्रगति का आधार माना जाता है, लेकिन बिहार जैसे राज्यों में आज भी स्कूली शिक्षा की स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। हाल ही में जारी 2024-25 की यू-डायस रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि बिहार के स्कूलों में छात्राओं की तुलना में छात्र पढ़ाई बीच में छोड़ने के मामलों में आगे हैं। यह स्थिति न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश की शिक्षा प्रणाली के लिए भी गंभीर चिंता का कारण है।
प्राथमिक स्तर पर बच्चों की स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों में औसतन 2.9 प्रतिशत ड्रापआउट दर्ज किया गया है। इसमें लड़कियों का ड्रापआउट केवल 1.2 प्रतिशत है, जबकि लड़कों का आंकड़ा 4.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह अंतर दर्शाता है कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर भी छात्र पढ़ाई को गंभीरता से नहीं ले पा रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर जहां इन कक्षाओं में औसत ड्रापआउट केवल 0.3 प्रतिशत है, वहीं बिहार की स्थिति कई गुना खराब है। मिजोरम जैसे राज्यों में यह दर 10.8 प्रतिशत है, जबकि राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश और असम में यह क्रमशः 3.6, 4.5 और 3.8 प्रतिशत है।
मध्य स्तर पर सबसे गंभीर स्थिति
कक्षा 6 से 8 के बीच का चरण किसी भी छात्र के लिए पढ़ाई की नींव मजबूत करने का समय होता है, लेकिन बिहार में इसी स्तर पर सबसे ज्यादा बच्चे पढ़ाई बीच में छोड़ रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन कक्षाओं में औसतन 9.3 प्रतिशत ड्रापआउट है। इसमें लड़कों का प्रतिशत 11.9 और लड़कियों का 6.6 है। यह अंतर यह साबित करता है कि जहां बच्चियां पढ़ाई में अपेक्षाकृत टिक रही हैं, वहीं लड़के ज्यादा संख्या में स्कूल छोड़ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इसी आयु वर्ग का औसत ड्रापआउट 3.5 प्रतिशत है, जिसमें लड़कों का 4.1 और लड़कियों का 2.9 प्रतिशत है। तुलना करने पर साफ हो जाता है कि बिहार की स्थिति राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक खराब है।
उच्च कक्षाओं में तस्वीर कुछ अलग
कक्षा 9 और 10 के विद्यार्थियों में औसत ड्रापआउट 6.9 प्रतिशत पाया गया है। इस वर्ग में लड़कों का प्रतिशत 7 और लड़कियों का 6.8 है। यह राहत की बात है कि इन कक्षाओं में बिहार का ड्रापआउट राष्ट्रीय स्तर से कम है। राष्ट्रीय औसत 11.5 प्रतिशत है, जिसमें लड़कों का ड्रापआउट 13.3 और लड़कियों का 9.6 प्रतिशत है। यह अंतर यह दिखाता है कि उच्च कक्षाओं में बिहार के विद्यार्थी अपेक्षाकृत टिके रहते हैं, लेकिन प्राथमिक और मध्य स्तर पर चुनौतियां गहरी हैं।
ड्रापआउट के पीछे प्रमुख कारण
रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के पढ़ाई छोड़ने के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण गरीबी है। आर्थिक तंगी के चलते अभिभावक बच्चों को कमाई में हाथ बंटाने के लिए स्कूल से बाहर निकाल देते हैं। इसके अलावा शिक्षा के महत्व के प्रति अभिभावकों की अनभिज्ञता भी एक बड़ी समस्या है। बहुत से परिवार पढ़ाई को प्राथमिकता नहीं देते और मानते हैं कि बच्चे बड़े होकर मजदूरी या पारंपरिक कामों में लग जाएंगे।
लड़कियों में बढ़ती जागरूकता
दिलचस्प बात यह है कि अब लड़कियां पढ़ाई के मामले में लड़कों से ज्यादा जागरूक हो रही हैं। आज विभिन्न क्षेत्रों में लड़कियों की उपलब्धियां उन्हें प्रेरित कर रही हैं। माता-पिता भी अब बेटियों की शिक्षा पर जोर दे रहे हैं, जिससे उनका ड्रापआउट कम हुआ है। दूसरी ओर, लड़के पढ़ाई में रुचि कम ले रहे हैं और जल्दी स्कूल छोड़ दे रहे हैं। यह प्रवृत्ति सामाजिक सोच और शिक्षा व्यवस्था दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
सुधार की आवश्यकता
इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, खेल और कौशल आधारित गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा। अभिभावकों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना भी जरूरी है। साथ ही, गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता और बच्चों के लिए छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन करना होगा। बिहार में शिक्षा की मौजूदा स्थिति यह स्पष्ट करती है कि लड़कों का स्कूल छोड़ना एक गंभीर समस्या बन चुकी है। हालांकि लड़कियों की शिक्षा में सुधार की स्थिति उत्साहजनक है, लेकिन समग्र रूप से राज्य को अभी लंबा सफर तय करना है। शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास ही नहीं, बल्कि समाज और राज्य की प्रगति की कुंजी है। इसलिए अब समय आ गया है कि ड्रापआउट की इस चुनौती का समाधान निकाला जाए, ताकि हर बच्चा शिक्षा से जुड़ा रह सके और अपने भविष्य को संवार सके।
