जातीय गणना मामले में अगली सुनवाई 14 को, शीर्ष अदालत का हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार

  • सुप्रीम कोर्ट बोली- 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है, 90 फीसदी पूरा हो जाएगा, क्या फर्क पड़ता है

नई दिल्ली/पटना। बिहार में जातीय गणना पर रोक की मांग पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने गणना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है। 90 फीसदी पूरा हो जाएगा। क्या फर्क पड़ता है। अब 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होगी। एक अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने जातिगत गणना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार चाहे तो गणना करा सकती है। इधर हाई कोर्ट के फैसले के चंद घंटे के बाद ही सरकार ने जातीय गणना को लेकर आदेश जारी किया। सरकार ने सभी डीएम को आदेश दिया गया है कि पटना हाई कोर्ट के फैसले के आलोक में बिहार जाति आधारित गणना 2022 के अवरुद्ध कार्य को फिर से शुरू किया जाए। पिछले साल जातिगत गणना का आदेश दिया गया था और बिहार सरकार के अनुसार यह लगभग पूरा भी कर लिया गया है।
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना आज इस मामले की सुनवाई की । हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए एनजीओ ‘एक सोच एक प्रयास’ की ओर से याचिका दायर की गई है। साथ ही साथ हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ नालंदा के रहने वाले एक याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने अपनी याचिका में दलील दी है कि किसी भी राज्य सरकार को जातीय जनगणना कराने का अधिकार नहीं है। इसके लिए बिहार सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है, वो संवैधानिक नहीं है। संविधान के अनुसार केवल केंद्र सरकार को जनगणना का अधिकार है। याचिकाकर्ता के वकील वरुण कुमार सिन्हा की दायर याचिका अनुसार के राज्य और केंद्र सरकार के बीच शक्तियों का बंटवारा स्पष्ट है। कौन क्या करेंगे, कौन क्या नहीं करेगा।
500 करोड़ खर्च करने की योजना
राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार बिहार सरकार जातीय गणना नहीं, सिर्फ सिर्फ लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से संबंधित जानकारी लेना चाहती है। इससे उनकी बेहतरी के लिए योजना बनाई जा सके। सरकार उन्हें बेहतर सेवा देने के लिए एक ग्राफ तैयार कर सके। पटना हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार यह काम नियम संगत है। पूरी तरह से वैध भी। राज्य सरकार चाहे तो गणना करा सकती है। हाई कोर्ट ने बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को ‘वैध’ करार दिया था। बिहार सरकार ने भी इसके लिए 500 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना भी बनाई है।

You may have missed