शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर से : घोड़ा पर होगा माता का आगमन, महिष पर होगी विदाई
पटना। शारदीय नवरात्रि की शुरूआत 17 अक्टूबर (शनिवार) से हो रही है। इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण जहां सार्वजनिक रूप से पंडाल पूजा की मनाही है, वहीं माता के उपासक सावधानी बरतते हुए अपने घरों में ही देवी की पूजा-आराधना की तैयारी में जुट गए हैं। इस बार किसी भी तिथि की क्षय नहीं होने से पूरे दस दिनों तक माता अम्बे की पूजा होगी। नवरात्रि के दसवें दिन विजयदशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि को सभी नवरात्रों में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना जाता है। आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विजया दशमी तक माता के विभिन्न रूपों की आराधना होती है।
अश्व पर आगमन व महिष पर होगी विदाई
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद् के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि शनिवार को अभिजीत मुहूर्त व सर्वार्थ सिद्धि योग में कलश स्थापना से आरंभ होकर शारदीय नवरात्र 26 अक्टूबर (सोमवार) को रवियोग में विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में माता अपनों भक्तो को दर्शन देने के लिए घोड़ा पर आ रही है। माता के इस आगमन से श्रद्धालुओं को उनके जीवन में अश्व की गति की तरह तरक्की मिलेगी। शासन, सत्ता में उलटफेर तथा पड़ोसी देशों से मनमुटाव की स्थिति बनेगी। इसके साथ ही माता की विदाई महिष पर होगी। माता के इस गमन से भारतवर्ष में आने वाले साल में रोग, शोक, बेरोजगारी में वृद्धि के आसार हैं। श्रद्धालु अपने घरों में कलश स्थापना कर माता का आवाह्न के साथ दुर्गा सप्तशती, दुर्गा सहस्त्र नाम, रामचरितमानस, सुंदरकांड, अर्गला, कवच, कील आदि का पाठ करेंगे।
शारदीय नवरात्र में बना दुर्लभ संयोग
आचार्य राकेश झा के अनुसार, शारदीय नवरात्र में तिथि, वार और नक्षत्रों के संयोग से लगभग प्रत्येक दिन माता की कृपा पाने हेतु पूजा-पाठ, मंत्र जाप से प्रसन्न करने के लिए या अन्य शुभ कार्यों के लिए उत्तम रहेगा। दस दिवसीय नवरात्र में 4 सर्वार्थसिद्धि, 1 त्रिपुष्कर और 4 रवियोग बन रहे हैं। इनके साथ ही सौभाग्य, धृति और आनंद योग भी रहेंगे। इस शुभ योग में चल-अचल संपत्ति में निवेश, जेवरात की खरीदी, लग्न की खरीदारी आदि के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त है। वहीं 19, 25 और 26 अक्टूबर को वाहन खरीदी का विशेष मुहूर्त है। नवरात्र के हर दिन बनने वाले शुभ योगों में नए कामों की शुरूआत करना श्रेष्ठ होगा।
कलश स्थापना से मिलेगा सुख-समृद्धि
पंडित झा ने देवी पुराण के हवाले से कहा कि नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापन का विशेष महत्व है। कलश में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार नवरात्र में कलश की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन, वैभव, ऐश्वर्य, शांति, पारिवारिक उन्नति तथा रोग-शोक का नाश होता है। कलश स्थापना आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को अभिजीत मुहूर्त के करना श्रेयस्कर होगा।
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
उदयकालिक योग: प्रात: 06:17 बजे से शाम 05:43 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:36 बजे से 12:24 बजे तक
गुली काल मुहूर्त: प्रात: 05:50 बजे से 07: 16 बजे तक