दानापुर में रीतलाल हारे: मसौढ़ी, विक्रम और बख्तियारपुर में महागठबंधन की हार, मनेर से जीते भाई वीरेंद्र
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पटना जिले में इस बार राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल दिए हैं। 2020 के मुकाबले 2025 के इस चुनाव में मतदाताओं ने उलटफेर करते हुए कई सीटों पर महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-लेफ्ट) को बड़ा झटका दिया है। शुरुआती रुझानों से ही साफ दिख रहा था कि पटना जिले में एनडीए बढ़त बना रहा है और अंततः परिणाम भी उसी दिशा में गए। जिले की 14 विधानसभा सीटों में इस बार एनडीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए उन सीटों पर भी जीत हासिल की, जहां पिछला चुनाव महागठबंधन के पक्ष में गया था।
दानापुर में रीतलाल की करारी हार, बीजेपी का कब्ज़ा बरकरार
दानापुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार मुकाबला बेहद चर्चित रहा। राजद के बाहुबली उम्मीदवार और लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाने वाले रीतलाल यादव को करारी हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के उम्मीदवार और पूर्व सांसद रामकृपाल यादव ने उन्हें 28,978 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। रामकृपाल यादव को 1,19,528 वोट मिले, जबकि रीतलाल यादव को 90,550 वोट पर संतोष करना पड़ा। यह हार सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि लालू यादव के राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र पर गहरा असर डालने वाली मानी जा रही है, क्योंकि दानापुर को अक्सर राजद के प्रभाव वाले क्षेत्रों में गिना जाता रहा है।
मसौढ़ी में ढहा राजद का गढ़, जेडीयू ने की ऐतिहासिक जीत
मसौढ़ी सीट, जिसे लंबे समय से राजद की सुरक्षित सीट माना जाता था, इस बार एनडीए ने अपने नाम कर ली। जेडीयू उम्मीदवार अरुण मांझी ने राजद की रेखा देवी को 7,643 वोटों से हराकर बड़ा उलटफेर किया। मसौढ़ी में यह पहली बार हुआ है जब इतने वर्षों बाद राजद को हार का सामना करना पड़ा। इसे लालू यादव और राजद की पारंपरिक राजनीति के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
बिक्रम, बख्तियारपुर और मोकामा में भी महागठबंधन की हार
मोकामा, बिक्रम और बख्तियारपुर तीनों सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों ने महागठबंधन को भारी अंतर से पराजित किया। पिछले चुनाव में जहां ये सीटें राजद और कांग्रेस के पाले में गई थीं, वहीं इस बार मतदाताओं ने बदलाव का संदेश देते हुए एनडीए के पक्ष में मतदान किया। इन सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवार बुरी तरह पिछड़ गए, जो पार्टी रणनीति और संगठन के लिए चिंताजनक संकेत हैं।
पालीगंज में सीपीआई-एमएल ने बचाई सीट, संदीप सौरभ की जीत
महागठबंधन के लिए थोड़ी राहत पालीगंज सीट से मिली, जहां सीपीआई-एमएल के संदीप सौरभ ने अपनी सीट बचाए रखी। उन्होंने 6,581 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। संदीप सौरभ को 80,868 वोट मिले, जबकि लोजपा (रामविलास) के सुनील कुमार को 74,287 वोट मिले। पालीगंज में लेफ्ट का लगातार मजबूत आधार इस चुनाव में भी कायम रहा। यह सीट महागठबंधन की रणनीति को कुछ हद तक मजबूती भी देती है।
मनेर से भाई वीरेंद्र की बड़ी जीत
मनेर विधानसभा क्षेत्र में राजद को बड़ी सफलता मिली, जहां पार्टी के वरिष्ठ नेता भाई वीरेंद्र ने एक बार फिर अपनी लोकप्रियता साबित की। उन्होंने लोजपा (रामविलास) के जितेंद्र यादव को 20,034 वोटों से हराया। भाई वीरेंद्र को 1,10,798 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी जितेंद्र यादव को 90,764 वोट ही प्राप्त हुए। यह जीत बताती है कि मनेर में अभी भी राजद का मजबूत जनाधार बरकरार है।
पटना जिले में सत्ता का समीकरण बदल गया
2020 में पटना की 14 सीटों में से 9 सीटें महागठबंधन के पास थीं, जबकि एनडीए के पास 5 सीटें थीं।
लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल उलट है— एनडीए ने मोकामा, बिक्रम, मसौढ़ी, बख्तियारपुर और दानापुर जैसी महत्वपूर्ण सीटें जीतकर महागठबंधन को गहरी चोट पहुंचाई है। कई परंपरागत राजद सीटों पर एनडीए की जीत बताती है कि मतदाता इस बार विकास और स्थानीय मुद्दों के आधार पर मतदान कर रहे थे।
लालू यादव के लिए सबसे बड़ा झटका
इस चुनाव में दानापुर और मसौढ़ी दो ऐसी सीटें थीं, जहां राजद को जीत का भरोसा रहता था। लेकिन इन दोनों सीटों पर मिली हार से राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। विशेषकर रीतलाल यादव की हार को लालू यादव के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि रीतलाल उनके सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक माने जाते हैं। पटना जिले के नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस बार हवा एनडीए के पक्ष में चली है और मतदाताओं ने बड़े पैमाने पर बदलाव का संकेत दिया है। आने वाले दिनों में इन परिणामों का असर बिहार की राजनीति में साफ दिखाई देगा।


