September 30, 2025

27 सितंबर को फिर बिहार आएंगे अमित शाह, एनडीए में सीट शेयरिंग पर लगेगी फाइनल मुहर, तैयारी तेज

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, राज्य की सियासी सरगर्मियां भी लगातार बढ़ रही हैं। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर चल रही चर्चाएं अब अंतिम चरण में पहुंच गई हैं। इसी बीच 27 सितंबर को एक बार फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बिहार दौरा तय हुआ है। माना जा रहा है कि शाह की इस यात्रा के बाद एनडीए के बीच सीट बंटवारे पर अंतिम मुहर लग जाएगी और चुनावी रणनीति को और प्रोफेशनल ढंग से लागू करने के लिए गठबंधन पूरी तैयारी में जुट जाएगा।
एनडीए में सीट-शेयरिंग पर मंथन
बीते कुछ सप्ताहों से भाजपा और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) समेत एनडीए के सहयोगियों के बीच लगातार बातचीत चल रही है। सूत्रों के मुताबिक अब तक के विमर्श से यह साफ हो चुका है कि बड़े दल भाजपा और जदयू बराबरी का फार्मूला अपनाना चाहेंगे। चुनावी गणित को देखते हुए दोनों पक्ष इस बात पर लगभग सहमत हो गए हैं कि जदयू 102 और भाजपा 101 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जदयू चाहती है कि उसे भाजपा से कम से कम एक सीट अधिक मिले ताकि गठबंधन में “बड़े भाई” की भूमिका उसके पास रहे। भाजपा भी इस पर सहमत होती दिख रही है क्योंकि पिछली बार (2020) जदयू के कमजोर प्रदर्शन से गठबंधन को संतुलन साधने में परेशानी हुई थी।
छोटे दलों की हिस्सेदारी
सीट बंटवारे का पेच सिर्फ भाजपा और जदयू तक सीमित नहीं है। इसमें छोटे दलों की भी अहम भूमिका है। चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को इस बार 20 सीटें मिल सकती हैं। इसके अलावा चुनाव बाद एक राज्यसभा और एक एमएलसी सीट देने पर भी बातचीत हो रही है। हालांकि चिराग ने शुरुआत में 40 सीटों की मांग किया था, लेकिन भाजपा और जदयू इसके लिए तैयार नहीं हुए। जीतनराम मांझी की हम पार्टी को 10 से 12 सीटें मिलने के आसार हैं। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के लिए भी लगभग 10 सीटों पर विचार किया गया है। इस बार विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) गठबंधन का हिस्सा नहीं है। बावजूद इसके, एनडीए यह सुनिश्चित करने में लगा है कि छोटे दलों को सम्मानजनक हिस्सेदारी देकर उनका समर्थन हासिल किया जा सके ताकि स्ट्राइक रेट बेहतर रहे।
पिछली बार का चुनावी समीकरण
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने कुल 125 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें भाजपा ने 74 सीटें, जदयू ने 43 सीटें, हम ने 4 और वीआईपी ने 4 सीटें जीती थीं। उस चुनावी परिणाम में भाजपा अपेक्षा से कहीं अधिक मजबूत दिखी थी, जबकि जदयू का प्रदर्शन कमजोर हो गया था। इस बार रणनीति इस प्रकार बनाई जा रही है कि दोनों बड़े दलों का संतुलन बना रहे और छोटे सहयोगियों को भी पर्याप्त जगह मिल सके।
शाह के दौरे का महत्व
अमित शाह का यह दौरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह इस महीने उनका बिहार का दूसरा दौरा होगा। शाह के आने के पीछे मुख्य उद्देश्य सीट बंटवारे की गुत्थी को सुलझाना और गठबंधन को अंतिम रूप देना है। माना जा रहा है कि उनके दौरे के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच निर्णायक चर्चा होगी। इसके साथ ही शाह की यात्रा का राजनीतिक संदेश भी स्पष्ट है। चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर के नेता लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं, ताकि संगठनात्मक मजबूती और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया जा सके।
एनडीए की रणनीति
एनडीए की रणनीति इस बार पूरी तरह चुनावी गणित और पिछले नतीजों पर आधारित है। भाजपा और जदयू यह समझ चुके हैं कि यदि आपसी तालमेल नहीं बना तो विपक्ष इस स्थिति का फायदा उठा सकता है। इसलिए सीट बंटवारे को लेकर समझौते की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जा रही है। गठबंधन यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई सहयोगी नाराज न होकर अलग करे न निकले। खासकर छोटे दलों को संतुष्ट करना अहम है क्योंकि वे सीमावर्ती और जातीय समीकरणों वाले क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए का सीट बंटवारा बड़ा मुद्दा बन गया है। अब सारी निगाहें 27 सितंबर को अमित शाह की यात्रा पर टिकी हैं। संभावना है कि इस दौरे के बाद सीटों की संख्या को लेकर औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी और गठबंधन पूरी तरह मजबूत होकर मैदान में उतर जाएगा। भाजपा और जदयू के बीच बराबरी का फॉर्मूला तय होना गठबंधन की मजबूती का संकेत है, जबकि छोटे दलों को सम्मानित हिस्सेदारी देकर एनडीए यह दिखाना चाहता है कि वह संतुलन बनाए रखने में सक्षम है। चुनावी मुकाबले से पहले इस कदम को एनडीए की बड़ी रणनीतिक सफलता माना जा सकता है।

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